चाहिए विकास का मीठा फल, तो होने दो महंगा पेट्रोल-डीजल

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑइल के दाम में 26 प्रतिशत की गिरावट आने के बावजूद देश में पेट्रोल-डीजल के दाम रोज बढ़ाए जा रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? सरकार महंगाई की चक्की में जनता को इतनी बुरी तरह क्यों पीस रही है? लगता है, राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद केंद्रीय नेतृत्व मनमानी करने के लिए मदमस्त हो गया है. उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं.’’ 

    हमने कहा, ‘‘ऐसी लोकप्रिय और प्रभावशाली सरकार को दोष मत दीजिए. पेट्रोल-डीजल के दाम पेट्रोलियम कंपनियां तय करती हैं, सरकार नहीं! जो कहना है, इन कंपनियों से कहिए. सरकार कहां से बीच में आ गई? वह तो सिर्फ एक्साइज ड्यूटी वसूल करती है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सरकार के इशारे पर ही चुनाव होने तक कंपनियों ने दाम नहीं बढ़ाए थे, अब उन्हें खुली छूट दे दी गई है. केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी कम करके जनता को राहत दे सकती है.’’ 

    हमने कहा, ‘‘बात समझने की कोशिश कीजिए. आपको अच्छी सड़कें और राजमार्ग चाहिए तो सरकार से टैक्स कम करने की उम्मीद मत कीजिए. विकास के लिए पैसा कहां से आएगा?’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सरकार के पास सेंट्रल विस्टा बनाने के लिए हजारों करोड़ रुपये हैं. वह संकट में घिरी लंका को आर्थिक मदद कर रही है. पीएम केयर्स फंड में बहुत मोटी रकम जमा है जिसका ऑडिट करने का कैग को अधिकार नहीं है. प्रशासनिक खर्च में भी कोई कटौती नहीं की जा रही है. जब कच्चे तेल या क्रूड के दाम इससे भी ज्यादा थे, तब यूपीए सरकार ने पेट्रोल-डीजल की दरें कम रखी थीं. वर्तमान सरकार तो कदम-कदम पर जनता को महंगाई का तोहफा दे रही है.’’ 

    हमने कहा, ‘‘सरकार को जनादेश प्राप्त है. वह 2024 के चुनाव तक चाहे जैसा कदम उठा सकती है. उसके कदमों को संसद की मंजूरी मिल जाती है. आलोचकों की वह चिंता नहीं करती. कहावत है- हाथी चला बाजार, कुत्ते भूंकें हजार!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें शक है कि अगले आम चुनाव के लिए सत्तारूढ़ बीजेपी को और मजबूत बनाने के लिए धन जुटाया जा रहा है. सरकार और पार्टी में आखिर फर्क ही कहां है?’’ हमने कहा, ‘‘ठीक है, शक की कोई दवा आज तक ईजाद नहीं हुई है.’’