अन्नदाता की अपनी साख आंदोलनकारी खा रहे मनपसंद खुराक

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज (Nishaenbaaz), एक खबर है कि आंदोलनकारी किसान मन मारकर या चेहरा लटकाकर नहीं बैठे हैं. वहां जलेबियां(Jalebis) बन रही हैं, बिरयानी पकाई जा रही है और लंगर खुल गया है. वे लोग डटकर खा-पी रहे हैं.’’ हमने कहा, ‘‘आंदोलन (Kisan andolan) के लिए एनर्जी चाहिए इसलिए शरीर को पोषण और कैलोरी मिलना जरूरी है. इस मुल्क की असली ताकत किसान हैं और किसानों को भी अपनी ताकत बढ़ाने का पूरा हक है. जो लोग खाना-पीना छोड़कर आंदोलन करते हैं, उनका स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है. वे सुस्त या निढाल हो जाते हैं और उनका वजन घट जाता है.

किसानों को अपना आंदोलन दमदार और वजनदार रखना है तथा अपनी मांगों को लेकर सरकार पर वजन डालना है तो किसानों को खाने-पीने में सुस्ती नहीं करनी चाहिए. चूंकि किसान मेहनतकश होते हैं, इसलिए शहरी लोगों की तुलना में उनकी खुराक भी अधिक होती है. ठंड के मौसम में भूख भी खुलकर लगती है.” पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम मानते हैं कि समूचे देश को अन्न खिलाने वाले अन्नदाता को अन्न खाने में कमी नहीं करनी चाहिए. अन्नदाता को अन्ना हजारे जैसा अनशन भी नहीं करना चाहिए. अन्न पूर्ण ब्रम्ह है. उसे आस्थापूर्वक ग्रहण करना चाहिए. भगवान कृष्ण ने भी गीता के 15वें अध्याय में कहा है- अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः। प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।। अर्थात व्यक्ति जब ईश्वर का नाम लेकर भोजन करता है तो उसका भोजन ईश्वर (वैश्वानर) को आहुति होती है जो हर जीव के शरीर में विद्यमान है. ऐसा मानकर चलिए कि ये किसान भी ईश्वर को आहुति दे रहे हैं.’’

हमने कहा, ‘‘वैसे भी अन्नदान बहुत बड़ा दान है, इसलिए हमें अन्नदाता के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए. पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने कुछ सोचकर ही ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था. इसी नारे में अटलबिहारी वाजपेयी ने जय विज्ञान का पुछल्ला लगा दिया था.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, बाकी सब तो ठीक है लेकिन हमने यह भी खबर पढ़ी कि कुछ किसान पिज्जा खा रहे हैं. क्या किसान को इतना आधुनिक बनना चाहिए? उसे तो मक्के की रोटी और सरसों का साग खाना चाहिए. गुड़ के साथ बाजरे की रोटी भी तो खा सकता है.’’ हमने कहा, ‘‘पिज्जा खाने में लज्जा कैसी? आप पिज्जा को सब्जी वाली रोटी कह सकते हैं. यह बनाने में भी आसान है. किसान शिमला मिर्च और टमाटर उगाते हैं. गाय-भैंस पालने से मक्खन भी उपलब्ध रहता है. इससे पिज्जा बनाना आसान हो जाता है. वे चाहें तो सैंडविच या बर्गर भी खा सकते हैं. ग्लोबलाइजेशन में हर चीज उपलब्ध हो गई है. आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग भी तो उन्हें लाकर खिला रहे हैं. खाने-पीने की पसंद छोड़िए, अभी इस बात की जरूरत है कि सरकार किसानों की मनपसंद इच्छा या मांग को पूरा करे.’’