पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, खुशी की बात है कि केंद्र सरकार ने सांसद विकास निधि बहाल कर दी है. इससे उनके चुनाव क्षेत्र खुशहाल होंगे क्योंकि इस रकम से कुछ न कुछ अच्छे काम होंगे. इस निधि को एमपी लैंड फंड कहा जाता है. सरकार बड़े लाड़ से सांसदों को अपने चुनाव क्षेत्र के विकास कार्य के लिए यह रकम देती है.’’
हमने कहा, ‘‘कोई भी गलत फहमी पालने की बजाय स्थिति को ठीक से समझ लीजिए. सांसद विकास निधि की रकम सीधे किसी सांसद के हाथों में नहीं आती. सांसद अपने क्षेत्र में कौन सा विकास कार्य करना चाहता है इसके लिए ठेकेदार को चिट्ठी देता है. ठेकेदार कलेक्टर से मिलता है और यदि कार्य जनोपयोगी दिखाई दिया तो कलेक्टर इसके लिए रकम जारी कर देता है.
मतलब यह कि सरकारी खजाने से रकम जारी होती है और ठेकेदार-इंजीनियर के हाथों में जाती है. जब विकास कार्य हो जाता है तो उसे सड़क, पुल, अस्पताल, कुआं, तालाब, समाज भवन निर्माण आदि पर नाम पट्टिका लगती है कि अमुक सांसद की निधि से इसका निर्माण हुआ है.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कहते हैं कि सांसद अपनी पसंद के ठेकेदार को कलेक्टर के नाम सिफारिशी चिट्ठी देते हैं. ठेकेदार से सांसद को कमीशन मिलता है तब चिट्ठी दी जाती है.’’
हमने कहा, ‘‘आपको विकास से मतलब होना चाहिए. बाल की खाल क्यों निकालते हैं? सांसद पहचान के ठेकेदार को नहीं तो क्या किसी अनजान आदमी को चिट्ठी देंगे? विकास हमेशा सभी की भागीदारी से होता है. कहा भी गया कि सर्वे सुखिना भवन्तु सभी सुखी रहने चाहिए.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कुछ सांसदों के बारे में कहा जाता है कि वे अपने ही परिवार की किसी स्कूल या इमारत के निर्माण या रिनोवेशन में सांसद निधि का इस्तेमाल कर डालते हैं. मुलायम सिंह का ध्यान सिर्फ अपने गांव सैकई के विकास पर रहा.’’
हमने कहा, ‘‘विकास कहीं का भी हो, उसे होते रहना चाहिए. कोई सांसद निधि से आत्म विकास करे तो आपको आपत्ति नहीं होनी चाहिए. आखिर पैसे का सर्कुलेशन होता है. वह एक हाथ से दूसरे हाथ में जाता है.’’