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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज एमसीडी या दिल्ली महानगर पालिका में ‘आप’ ने झाड़ू मारकर वहां 15 वर्षों से जमी बीजेपी को बाहर कर दिया. ‘आप’ ने 250 में से 134 सीटें जीत कर दिखादिया कि दिलवालों की दिल्ली ने उन्हें दिल दे दिया है. यदि कोई मंत्री सत्येंद्र जैन और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का हवाला देते हुए केजरीवाल से पूछे-आप यहां आए किसलिए तो उनका जवाब होगा-आपने बुलाया इसलिए! चाहे जो भी हो झाड़ू ने सब झाड़ कर रख दिया. कांग्रेस को तो एकदम बुहार कर 9 सीटों पर ला दिया.’’

    हमने कहा, ‘‘झाड़ू की लोकप्रियता इस बात से है कि वह घर-घर में है जबकि कमल सिर्फ तालाबों या बीजेपी के झंडे पर है. दीपावली को यदि लक्ष्मी को कमल पुष्प चढ़ाया जाता है तो कितने ही लोग नई झाड़ू की पूजा भी करते हैं. अब तो दिल्ली के विकास और टाउनप्लानिंग में प्रधानमंत्री मोदी को केजरीवाल का सहयोग भी लेना पड़ेगा. समन्वय से ही काम बनेगा.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सड़कों को बुहारनेवाला मोटी तीलियों का सख्त झाड़ू खराटा कहलाता है. अब तो कुछ शहरों में सड़कों पर झाड़ू लगानेवाली स्वीपिंग मशीन भी आ गई है. गाड़ी चलती जाती है और पीछे-पीछे झाड़ू से सफाई होती रहती है.’’

    हमने कहा, ‘‘झाड़ू का इतना गुणगान मत कीजिए. बीजेपी मानती है कि ‘आप’ के झाड़ू में भ्रष्टाचार का भूसा और महत्वाकांक्षा का मकड़जाल चिपका हुआ है. जिन लोगों के घर में वॅक्यूम क्लीनर इस्तेमाल होता है, वे झाड़ू का महत्व क्या जानें! प्राथमिक स्कूल की पुरानी हिंदी किताब में बचपन में हमने जहूर  बाबा की कविता पढ़ी थी जिसमें झाड़ू का जिक्र था. उस कविता की पंक्तियां थीं- उठो बालकों, हुआ सबेरा, चिड़ियों ने तज दिया बसेरा, बहन तुम्हारी झाड़ू लेकर घर का कूड़ा हटा रही है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज तब झाड़ू घरों तक सीमित था लेकिन अब वह राजनीति में दिल्ली से पंजाब तक असर दिखा रहा है. कभी चुनाव में होता था शोर कानफाड़ू, आज चलता है जहां-तहां झाड़ू!’’