पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की शिकायत है कि मोदी सरकार संसद में विपक्ष को बोलने नहीं देती. विपक्ष जैसे ही संसद में बेरोजगारी, महंगाई, अग्निपथ या चीन की घुसपैठ वाले मुद्दे उठाता है, उसे बोलने नहीं दिया जाता और माइक बंद कर दिया जाता है. इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?’’
हमने कहा, ‘‘आवाज बुलंद हो तो माइक की क्या जरूरत है! शेर जब दहाड़ता है या हाथी जब चिंघाड़ता है तो क्या उसे माइक की आवश्यकता होती है? आवाज में खुद की बड़ी ताकत होती है. आपने रेडियो पर अनाउसमेंट सुना होगा. आवाज की दुनिया के दोस्तो! नूरजहां ने गाया था- आवाज दे कहा है, दुनिया मेरी जवां है. एक गीत है- नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रखना! संसद और विधानसभाओं में भी कितने ही बिलों पर ध्वनिमत या आवाजी मतदान होता है. एकता का आवाहन करते हुए नारा दिया जाता है- आवाज दो हम एक हैं.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मुद्दे पर आइए. राहुल गांधी कहते हैं कि विपक्ष की आवाज दबाई जा रही है. मोदी हमेशा एकपक्षीय तौर पर अपने मन की बात करते हैं. विपक्ष को बोलने से रोका जाता है.’’
हमने कहा, ‘‘शिकायत करना कमजोरी का लक्षण है. सोचकर देखिए कि महात्मा गांधी कभी संसद में नहीं गए लेकिन समूचा देश उनकी आवाज सुनता था. नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जय हिंद कहा था तो वह नारा इतना अमर हो गया कि हर प्रधानमंत्री लाल किले से भाषण के बाद मेरे साथ 3 बार बोलो जय हिंदी कहने लगा. मोदी मन की बात कहते हैं तो राहुल भी जन की बात कहें. संसद में नहीं तो सड़क पर ही सही! चुनाव के मौके पर गुजरात या हिमाचल प्रदेश जाकर बोलने का मौका था लेकिन राहुल ने भारत जोड़ो, इलेक्शन छोड़ो की राह चुन ली. वे अपने बढ़ते कदम का दम दिखा रहे हैं. सरकार के लिए असुविधाजनक मुद्दे पेश करते हुए विपक्ष कह रहा है कि बोलूंगा तो बोलोगे कि बोलता है. उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष को आतंकित और परेशान करने के लिए जांच एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सच पूछा जाए तो जांच एजेंसियां अलादीन के जादुई चिराग का जिन्न होती है. जिसके हाथ सत्ता का चिराग आ गया, उससे यह जिन्न पूछता है- क्या हुक्म है मेरे आका? किसकी करूं जांच और कहां मारूं छापा?’’