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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जब किसी पार्टी प्रमुख या मुख्यमंत्री के सितारे गर्दिश में आ जाते हैं तो उसके पुराने साथी ऐसे मौके पर पीठ फेर लेते हैं.’’ हमने कहा, ‘‘कोई मुंह फेरे या पीठ फेरे, आपको इससे क्या लेना-देना! इस दुनिया में हेराफेरी चलती ही रहती है. कभी कोई मतलब के लिए मुखातिब रहता है तो कभी देखते ही मुंह फेर लेता है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम मुंह की नहीं, पीठ की बात कर रहे हैं. शिवसेना के बागी असम में हैं जहां कामाख्या देवी का शक्तिपीठ है. उधर बागियों की पीठ पर बीजेपी का हाथ है. प्रोत्साहन या शाबाशी देने के लिए पीठ पर हाथ फेरा जाता है. इतिहास पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि बहादुर लोग दुश्मन की पीठ पर वार नहीं करते थे, जबकि विश्वासघाती हमेशा पीठ में छुरा घोंपता था.’’

    हमने कहा, ‘‘जिनकी रीढ़ में दम नहीं होता, वे अपनी कमजोर पीठ की दुहाई देते हुए कामचोरी करते हैं. जबकि अवसरवादी लोगों की नीति होती है- जैसी बहे बयार, पीठ पुनि तैसी कीजे!’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, गरीब का पेट हमेशा पीठ से लगा रहता है. इंसान के लिए सबसे कठिन काम अपनी पीठ पर साबुन लगाना है. फैशन शो में महिलाएं अपनी पीठ खुली रखती हैं. पीठ को अंग्रेजी में बैक कहते हैं और कुबड़े आदमी को ‘हंचबैक’ कहा जाता है. खोई हुई फाइल भी बैकअप से मिल जाती है. बिजनेस करते समय हमेशा बैकअप प्लान तैयार रखना चाहिए. लोग व्यासपीठ पर खड़े होकर ऐसा भाषण देते हैं जो ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ होता है. भ्रष्ट नेता सदाचार और ईमानदारी पर जब लेक्चर देते हैं तो ऐसा लगता है मानो कौआ चला हंस की चाल!’’

    हमने कहा, ‘‘एक बात यह भी समझ लीजिए कि जिनकी पीठ काफी मजबूत होती है, उन्हें पहचानकर लोग उन पर गधे जैसा बोझ लाद देते हैं. आम जनता अपनी पीठ पर महंगाई और बेरहमी से लादे गए टैक्स का बोझ ढोती है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘फिलहाल उद्धव ठाकरे की पीठ पर शरद पवार का और बागी शिवसेना नेताओं की पीठ पर बीजेपी का हाथ है.’’