nishanebaaz Medical students from Ukraine, many promises while bringing, but now refuse

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जब कोई वचन दिया है तो उसे निभाना भी चाहिए. रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाएं पर वचन न जाई! युद्धग्रस्त यूक्रेन से भारतीय मेडिकल छात्रों को सुरक्षित वापस लाते समय उनसे बहुत वादे किए गए थे और कहा गया था कि उन्हें भारत के मेडिकल कॉलेजों में समाहित कर लिया जाएगा लेकिन अब सरकार वादाखिलाफी कर रही है. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि भारतीय विश्वविद्यालयों में इन मेडिकल छात्रों को नहीं रखा जा सकता. ये छात्र यूक्रेन के कॉलेजों से एप्रूवल लेने के बाद अन्य देशों में ट्रांसफर लेने का विकल्प चुन सकते हैं.’’ 

    हमने कहा, ‘‘सभी को याद है कि सरकार ने इन छात्रों को यहां एडमिशन देने और पढ़ाई का नुकसान न होने देने का वादा किया था अब वह वादे से क्यों पलट रही है? वह वर्तमान कालेजों में सीटें बढ़ा सकती थी या फिर नए मेडिकल कालेज खोल सकती थी.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सरकार ने पहले तो बहुत वादे कर दिए लेकिन बाद में उसे समझ में आया कि खराब नीट स्कोर या सस्ती कॉलेज फीस की वजह से इन छात्रों ने यूक्रेन के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई को चुना. अब यदि कम नीट स्कोरवाले छात्रों को भारत के मेडिकल कॉलेजों में समयोजित किया जाएगा तो पहले से पढ़ रहे स्टुडेंट्स आपत्ति कर सकते हैं. यदि इन छात्रों को खराब मेरिट के बावजूद दाखिला दिया गया तो यह उन छात्रों के साथ अन्याय होगा जो मेरिटोरियस या प्रतिभाशाली हैं. यूक्रेन से लौटे छात्रों को भारतीय कॉलेजों में एडमिशन देना देश की मेडिकल शिक्षा के मानक या स्टैंडर्ड को प्रभावित करेगा.’’

    हमने कहा, ‘‘यह बात इन छात्रों को वापस लाने से पहले ही सोचनी थी. उन्हें अपनाकर ठुकराया जा रहा है. अब ये बेचारे न इधर के रहे, न उधर के! रूस-यूक्रेन युद्ध अभी तक समाप्त नहीं हुआ है. ये छात्र जाएंगे भी तो कहां? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इनका पाठ्यक्रम एकाध वर्ष ज्यादा बढ़ाकर स्पेशल केस के रूप में इन्हें एडमिशन दे दिया जाए. भारत में डाक्टरों की कमी है. इनके सामने शर्त रखी जा सकती है कि पढ़ाई पूरी होने पर उन्हें ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में सेवा देनी होगी.’’