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प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा पुण्य कोई नहीं है.

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान एनएसडीएल की प्रबंध निदेशक पद्मजा चुंडरू ने भाषण देने के दौरान गला सूखने पर पानी देने के लिए इशारा किया तो स्वयं केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मंच पर उनके पास पानी की बोतल लेकर पहुंच गईं और खुद ढक्कन खोलकर अधिकारी को बोतल थमाई. केंद्रीय वित्त मंत्री के इस सौजन्य और सदाशयता के लिए आप क्या कहेंगे?’’

    हमने कहा, ‘‘प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा पुण्य कोई नहीं है. निर्मला सीतारमण ने निर्मल शीतल जल देकर यही किया. उनके मन में यह बात नहीं आई कि मैं तो केंद्रीय फाइनेंस मिनिस्टर हूं और यह अधिकारी महिला मुझसे काफी जूनियर है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, बड़ी और उदार सोच रखनेवाला ही वास्तव में बड़ा होता है. इतिहास और पुराण में जल देने का उल्लेख है. जब शरशय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने पीने के लिए जल मांगा तो लोग सोने-चांदी के पात्रों में जल लेकर उनके पास गए. पितामह ने उन्हें मना कर दिया और कहा कि मुझे जल सिर्फ अर्जुन पिलाएगा. अर्जुन ने तुरंत धरती पर इस परफेक्ट एंगल से बाण मारा कि गंगा का पानी निकलकर उसकी धार सीधे गंगापुत्र भीष्म के मुख में गई और वे तृप्त हो गए. आस्तिक लोग रोज सूर्यदेवता को जल से अर्घ्य देते हैं तथा पितृपक्ष में अपने पितरों को पानी देते हैं. सहृदय लोग गर्मी में प्याऊ लगवाते हैं. कुछ तो अपने घर के सामने नांद में पानी भरकर प्यासी गैया या कुत्ते के लिए व्यवस्था करते हैं. परिंदों के पीने के लिए भी गैलरी या आंगन में पानी रखा जाता है.’’

    हमने कहा, ‘‘जब नादिरशाह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया तो तख्ते ताऊस पर बैठकर हुक्म दिया- प्यास लगी है, जल्दी पानी लाओ! इस पर पूर्व शासक मोहम्मद शाह के इशारे पर सोने की सुराहियों में पानी लेकर दासियां नाचते-ठुमकते हुए आईं. नादिरशाह ने झपटकर पानी ले लिया और अपने लोहे के टोप में डालकर पी लिया. उसने मोहम्मद शाह को फटकारते हुए कहा कि अगर हम इतने नाज-नखरे के साथ पानी पीते रहते तो ईरान से यहां तक नहीं आते. पानी को लेकर मुहावरे-कहावतें भी हैं जैसे कि पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करना चाहिए. मैंने अच्छे-अच्छों को पानी पिलाया है. मुझे पता है कि तुम कितने पानी में हो! कुछ लोग पानी पी-पीकर कोसते हैं. पानीपत की लड़ाइयां इतिहास में मशहूर हैं.’’