कोई चेहरा हसीन है तो कोई दिलीप कुमार जैसा गमगीन.’’
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, राजनीति में चेहरों की बहुतायत है. कोई चेहरा जाना पहचाना है तो कोई अनजाना! किसी को देखकर लगता है- भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे! किसी का चेहरा समाजवादी है तो कोई विश्वासघाती है, किसी के चेहरे से शराफत टपकती है तो कहीं अमावस नजर आती है. कोई चेहरा हसीन है तो कोई दिलीप कुमार जैसा गमगीन.’’
हमने कहा, ‘‘चेहरा क्या देखते हो, दिल में उतर के देखो ना! सिर्फ सूरत मत देखो, सीरत पर भी गौर करो. इस बात पर ध्यान दो कि उम्मीदवार के चेहरे पर उम्मीद झलकती है या वह पहले ही नाउम्मीद हो चुका है? उससे सीधा सवाल करो- हाऊ इज दि जोश?’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से यूपी के सीएम चेहरे को लेकर जब सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि मैं हूं ना! क्या मेरे चेहरे के अलावा आपको कोई चेहरा दिखता है? पता नहीं क्यों, इसके बाद दूसरे ही दिन उन्होंने कह दिया कि पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा तय करेगी.’’
हमने कहा, ‘‘राजनीति ऐसी बला है जिसमें एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग. चेहरे और मुखौटे में फर्क करना बड़ा मुश्किल हो जाता है. कितने ही कांग्रेसजन प्रियंका के चेहरे के हाव-भाव और चाल-ढाल में उनकी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं.’’
हमने कहा, ‘‘लोगों की राय से अपनी राय अलग रखिए. चुनावी राज्यों के मतदाता सभी उम्मीदवारों की शक्ल गौर से देखेंगे और जिस पर दिल आ जाए, उससे कहेंगे- ये चांद सा रोशन चेहरा, जुल्फों का रंग सुनहरा! जो मतदाता कन्फ्यूज्ड रहेंगे, वे कहेंगे- चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम, लाजवाब हो! कुछ फरमाइश करेंगे- रुख से जरा नकाब उठा दो मेरे हुजूर, जलवा फिर एक बार दिखा दो मेरे हुजूर! मतदाता को जो चेहरा बेहद पसंद आ जाएगा, उससे कहेंगे- तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती, नजारे हम क्या देखें!’’