nishanebaaz-Pressure and frustration are part of life, says Kapil dev

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, तनाव, दबाव और हताशा जीवन के अनिवार्य अंग हैं. सभी इसे महसूस करते हैं परंतु कुछ लोग खुद को बहुत जवांमर्द बताते हुए कहते तैं कि दबाव या हताशा सिर्फ बहानेबाजी है. यह बेकार के चोंचले या नखरे हैं. 1983 में भारतीय टीम को पहली बार क्रिकेट का विश्वकप दिलानेवाले और शानदार ऑल राउंडर रहे कपिल देव ने कहा कि आज बच्चे एसी स्कूल में पढ़ते हैं, मां-बाप मोटी फीस देते हैं, टीचर आपको हाथ नहीं लगा सकता और आप शिकायत करते हो कि आप पर प्रेशर है.’’

    हमने कहा, ‘‘कपिल देव को बदलते वक्त के बारे में सोचना चाहिए. लगभग 30 वर्ष पहले तक कोई बच्चा 75 से 80 प्रतिशत नंबर लेकर पास होता था तो माता-पिता का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता था. आज यदि 90 प्रतिशत से कम नंबर आए तो बच्चा और माता-पिता शर्म महसूस करते हैं. काम्पीटीशन बहुत बढ़ गया है. प्रतिभाशाली और मेहनती छात्रों पर भी दबाव रहता है 96 से 99 प्रतिशत तक नंबर हासिल करें बल्कि कुछ प्वाइंट ज्यादा ही! परीक्षा बच्चे की होती है और तनाव माता-पिता झेलते है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कपिल देव ने कहा कि ये प्रेशर और डिप्रेशन (दबाव व अवसाद) अमेरिकी शब्द हैं. मैं एक किसान हूं जिसने खेलना पसंद किया. यदि आप खेलकर आनंद लेते हो तो प्रेशर कैसे हो सकता है?’’

    हमने कहा, ‘‘किसानों पर मौसम की मार कर्ज के बोझ और तकाजों का भारी प्रेशर होता है और वे डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर लेते हैं. रही बात खेल की तो क्रिकेट आजकल 12 महीने चलता है. कोई विदेशी टीम भारत दौरे पर आती है तो कभी अपनी टीम विदेश दौरे पर रहती है. इसके अलावा आईपीएल सीजन भी रहता है. हर 4 साल में वर्ल्डकप टूर्नामेंट आ जाता है. कपिल के जमाने में इतनी बिजली शिड्यूल नहीं थी. खिलाड़ी लंबे समय तक परिवार से दूर रहते हैं. उन्हें इंज्योरी का भी डर रहता है. जब बल्ले से रन नहीं निकलते तो करियर और रैंकिंग पर बुरा असर पड़ता है. फॉर्म चला जाने से डिप्रेशन आता है. इतने पर भी कपिल देव ऐसी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों का मखौल उड़ाते हैं. कपिल अपवाद हो सकते हैं लेकिन हर सामान्य व्यक्ति दबाव और हताशा के दौर से कभी न कभी गुजरता है.’’