पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, खाड़ी देश कतर में फुटबाल का महाकुंभ शुरू हो गया है. इसमें 32 टीमें 8 ग्रुप में हिस्सा लेंगी. हर ग्रुप में 4 टीमें रहेंगी. देखना होगा कि कतर में कौन सा खिलाड़ी कहर ढाता है और अपना असर दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखता. कतर विश्वकप की हर खबर पर सबकी नजर रहेगी.’’
हमने कहा, ‘‘कतर के हर मैच में दोनों टीमों के 22 खिलाडी एक बेचारे फुटबाल के पीछे पड़े रहेंगे. उसे किक लगाएंगे, सिर से टक्कर मारेंगे. एक दूसरे को पास देंगे, मूव बनाएंगे. स्ट्राइकर गेंद को आगे ले जाएगा और डिफेन्डर उसे रोकेंगे. अब फुटबाल मुकाबले को लेकर नई शब्दावली आ गई है. पहले सेंटर फारवर्ड, राइट इन, लेफ्ट इन, हाफ बैक, फुल बैक, जैसे शब्द ज्यादा प्रचलित थे. आप भी फुटबाल को सॉकर कहिए.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सिर्फ कतर पर ही नहीं हमारे कुछ नेताओं की कतरनी जैसी चलनेवाली जुबान पर भी गौर कीजिए. वे कुछ ऐसा बोल जाते हैं जिससे विवाद उत्पन्न हो जाए और माहौल गरमा जाए. खबरों की ऐसी कतरन से लोगों के दिल की धड़कन बढ़ जाती है. कोई जानबूझकर सावरकर का मुद्दा छेड़कर ठंड के मौसम में गरमी का अहसास करा देता है तो कोई छत्रपति शिवाजी महाराज को पुराना नायक बताकर शरद पवार और गडकरी की प्रशंसा के पुल बांधने लगता है. पता नहीं यह सब सोच-समझकर बोला जाता है या अनायास मुंह से निकल जाता है. कहीं यह भी फुटबाल के समान राजनीति के मैदान में ‘मूव’ बनाने और गोल करने की राजनीति तो नहीं है. हमें अपनी पॉलिटिक्स के मेसी और रोनाल्डो को पहचानना होगा. उधर फुटबाल की शानदार किक है तो इधर राजनेताओं की आपस में झिकझिक! पानठेले पर बोल्डर और कतरी सुपारी है तो कतर में फुटबाल टीमों और राजनीति में नेताओं के आपस में भिड़ने की तैयारी है. किसी की बातों में है मसखरी तो कुछ नेता लहर पैदा करने शांत तालाब में फेंकते हैं कंकरी!’’