nishanebaaz-The country was ruined by Revdi culture, if we give it, then accept it as a gift to the country's interest

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज हमारा मन रेवड़ी खाने का हो रहा है. रेवड़ी स्वादिष्ट होने के अलावा पोषक भी होती है. उसमें तिल और चीनी का गठबंधन होता है. उसे खाने से ऊर्जा मिलती है.’’ हमने कहा, ‘‘ऐसी बात है तो जाकर किसी दुकान से रेवड़ी खरीद लीजिए. उसके बढ़ने का इंतजार मत कीजिए. यह भी सोच लीजिए कि रेवड़ी कितनी खाएंगे. यदि शुगर के पेशेंट हैं तो रेवड़ी से परहेज कीजिए.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, रेवड़ी को लेकर कहावत है- अंधा बांटे रेवड़ी, अपने-अपने को दे. सोच रहे हैं कि कोई गांठ का पूरा और अक्ल का अंधा यहां आ जाए तो मुफ्त की रेवड़ी मिल जाएगी, खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.’’

    हमने कहा, ‘‘जब भी चुनाव आता है, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेता मतदाताओं को लुभाने के लिए रेवड़ी बांटते हैं. यह सिलसिला तमिलनाडु से शुरू हुआ जहां जयललिता की एआईएडीएमके ने कलर टेलीविजन बांटने का चुनावी वादा किया था. वहां अम्मा कैंन्टीन, अम्मा मेडिसिन वगैरह शुरू किए गए थे. जवाब में करुणानिधि की पार्टी डीएमके भी ऐसे ही फंडे आजमाती थी. फिर अन्य राज्यों में भी पार्टियों ने यह सिलसिला शुरू कर दिया.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, लुभावने आफर मार्केटिंग का अंग होते हैं. जब 2 शर्ट खरीदने पर तीसरा शर्ट मुफ्त देने का वादा किया जाए तो दूकान पर ग्राहक दौड़ चले आते हैं. मुफ्त वाली चीज आनंद देती है.’’

    हमने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी ने जनता से अपील की है कि मुफ्त की रेवड़ियां बांटने वालों के झांसे में न आएं. इस तरह की मुफ्तखोरी से देश तरक्की नहीं करता. सरकारी खजाने पर बोझ आता है. बढ़े हुए टैक्स के रूप में जनता को इसकी कीम त चुकानी पड़ती है. मुफ्त की बिजली, पानी की घोषणाओं पर मोदी बरस पड़े.’’

    पड़ोसी ने कहा, क्या मिड डे मील वृद्धावस्था पेंशन, गरीबों को मुफ्त राशन, स्कूल जानेवाली लड़कियों को मुफ्त साइकिल जैसी योजनाओं को मुफ्त उपहार या रेवड़ी कहा जा सकता है?’’ हमने कहा,‘‘बात समझने की कोशिश कीजिए. बीजेपी बांटे तो लोक कल्याणकारी योजना या सब्सिडी और अगर विपक्षी पार्टियां बांटें तो वही चीज रेवड़ी या खैरात!’’