नफरत भरे भाषण या बयान देनेवाले मीडिया की सुर्खियों में झलकते देखे गए हैं.
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, राजनीति में अपराध या धर्म की मिलावट देखी जाती है. क्या इसे दूर नहीं किया जा सकता?’’ हमने कहा, ‘‘राजनीति की दाल में इन्हीं चीजों का तड़का लगाया जाता है. नेताओं को यही छौंक-बघार पसंद आती है. मतदाताओं को कर्म नहीं धर्म के नाम पर प्रभावित किया जाता है. भड़काऊ बयान देनेवालों की जल्दी पहचान बनती है. वे अचानक देशव्यापी चर्चा में आ जाते हैं. नफरत भरे भाषण या बयान देनेवाले मीडिया की सुर्खियों में झलकते देखे गए हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता भी ऐसे लोगों की हरकतों की अनदेखी करते हैं. आपको याद होगा कि भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया था. अकोला के कालीचरण महाराज ने भी गांधी को निशाना बनाते हुए गोडसे का नमन किया. ऐसी ही बयानबाजी यति नरसिंहानंद ने की. साक्षी महाराज अल्पसंख्यकों की तीखी आलोचना करते रहते हैं. साध्वी निरंजन प्राची ने रामजादे विरूद्ध हरामजादे का राग छेड़ा था.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज भारत की तस्वीर अनेक धर्म, संप्रदाय, विविध संस्कृति और भाषा-बोली वाले देश की है. विविधता में एकता भारत की पहचान है. यह अनेक रंगों के फूलवाले गुलदस्ते के समान है चाहे 1857 का स्वातंत्र्य समर हो या 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, देशवासियों ने हमेशा एकता दिखाई. पं. रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान जैसे क्रांतिकारी एकसाथ फांसी पर चढ़े. जब विदेशी हमला हुआ तब भी भारतीयों की एकता चट्टान के समान मजबूत थी. राजनीति में फैल रहे नफरत के जहर का इलाज क्या है?’’
हमने कहा, ‘‘सारे धर्मों से राष्ट्रधर्म ज्यादा बड़ा है. भारतवासी एक रहेंगे तो विदेशी ताकतें हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी. इसलिए कहना होगा- नफरत करनेवालों के सीने में प्यार भर दूं. मैं वो दीवाना हूं पत्थर को मोम कर दूं.’’