पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जनता दल (यू) बार-बार कह रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण मौजूद हैं. जदयू की राष्ट्रीय बैठक में भी इस आशय का प्रस्ताव पारित किया गया लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि नीतीश इस पद के दावेदार नहीं हैं. यह अजीब सी विरोधाभास वाली बात है. यदि सचमुच नीतीश प्राइम मिनिस्टर मटीरियल हैं तो दावेदारी पेश करने में संकोच कैसा? वे डंके की चोट पर खुद को 2024 के लिए पीएम पद का प्रत्याशी घोषित करें. मन मार कर रहने से क्या फायदा?’’ हमने कहा, ‘‘जदयू चाहता होगा कि विभिन्न पार्टियां नीतीश के नाम पर आम सहमति बनाकर उनसे अनुरोध करें कि चुनाव में पीएम पद की दावेदारी का सेहरा पहनने को तैयार हो जाइए. नीतीश ने इनकार नहीं किया है. इसका मतलब ‘मन-मन भावे मुड़िया हिलावे’ जैसी स्थिति है. पार्टी ने उनके गुणों का बखान कर दिया.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, गुण के बारे में कहावत है- गुण न हिरानो, गुणग्राहक हिरानो है. नीतीश में गुण है तो गुणग्राहकों को सामने आना चाहिए. आखिर हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है. प्रश्न उठता है कि क्या नीतीश को मोदी के समान मन की बात कहना आता है? क्या वे असंभव किस्म के आश्वासन देकर आलोचकों द्वारा ‘फेकू’ कहलाने की योग्यता रखते हैं? क्या नीतीश मोदी जितनी लंबी दाढ़ी बढ़ा सकते हैं?’’ हमने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री पद का मामला ऐसा है कि कोई गुण या अनुभव न होने पर भी इसके लिए किसी की लाटरी लग जाती है. जैसे क्रिकेट को गेम ऑफ चांस कहते हैं, वैसे ही एचडी देवगौड़ा जैसे व्यक्ति बाय चांस पीएम बन गए थे. चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बनने के पहले कभी मंत्री या किसी राज्य के मुख्यमंत्री भी नहीं रहे. मोरारजीभाई देसाई 80 वर्ष की उम्र में पीएम बने थे.
सोचिए, किस्मत कितनी देरी से उन पर मेहरबान हुई! मोदी भी केंद्रीय नेता या सांसद नहीं थे. जब 2014 में वे पहली बार लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होकर आए तो उन्होंने संसद भवन के सामने माथा टेका. इंसान की जिंदगी ऐसी ही अकल्पनीय होती है. वह उस नदी के समान है जो पहाड़ों से झरने की तरह उतरती, पत्थरों में अपना रास्ता खोजती, उमड़ती, बलखाती, अनगिनत भंवर बनाती, तेज चलकर अपने ही किनारों को काटती और फिर मैदान में जाकर शांत और गहरी हो जाती है.’’