
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हम आपके यहां आकर फ्लोर टेस्ट करना चाहते हैं. इससे पता चल जाएगा कि आपका जमीनी आधार कितना मजबूत है. उसमें दम है भी या नहीं! जिनके पैरों तले से जमीन खिसक जाती है, वे फ्लोर टेस्ट के नाम से कतराते और घबराते हैं. हमें उम्मीद है कि आप इसके लिए राजी होंगे.’’
हमने कहा, ‘‘फ्लोर टेस्ट करने की क्या जरूरत है? हमारे घर का फर्श पहले सीमेंट का था, फिर हमने उस पर लिनोलियम बिछाकर उसे सजाया लेकिन इससे दिल नहीं भरा तो हमने बढ़िया महंगी वाली वेट्रिफाइड टाइल्स लगवा ली जिसमें आप अपना चेहरा भी देख सकते हैं.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें इस बात से कोई मतलब नहीं कि आपके फ्लोर पर टाइल्स लगे हैं या मार्बल, आपके किचन में कड़प्पा स्टोन है या ग्रेनाइट! हम प्रत्यक्ष निरीक्षण में विश्वास रखते हैं. फ्लोर टेस्ट तो हर हालत में होकर रहेगा. चाहें तो डेढ़-दो हफ्ते की मोहलत दे सकते हैं, इससे ज्यादा की नहीं! फ्लोर टेस्ट से पता चल जाएगा कि आप अपने मकान में टिक पाएंगे या नहीं.’’
हमने कहा, ‘‘यह तो बेकार की जबरदस्ती है. जिन लोगों के कच्चे मकान थे और जिनके यहां गोबर से लीपा जानेवाला मिट्टी का फर्श था, उन्होंने भी कभी फ्लोर टेस्ट नहीं दिया. यदि आप पार्टी में चल रही अनबन की बात करते हैं तो कहावत है- घर-घर में मिट्टी के चूल्हे रहते हैं!’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, पुरानी कहावतों को बट्टे खाते में डालिए. प्रधानमंत्री मोदी ने देश की तस्वीर बदल दी है. अब गरीबों के घर में भी उज्ज्वला योजना का गैस कनेक्शन मिल जाएगा. मिट्टी के चूल्हे इतिहास का हिस्सा बन गए हैं. अब फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हो जाइए.’’
हमने कहा, ‘‘अंग्रेजी में आटे को भी फ्लोर कहते हैं जिसकी स्पेलिंग अलग है. आप चाहें तो हमारे यहां के शरबती गेहूं वाले आटे की रोटी या हलुआ बनवाकर टेस्ट ले लीजिए.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मुद्दे की बात यह है कि सदन में फ्लोर टेस्ट लिया जाएगा और वह टेस्ट तय करेगा- मार दिया जाए कि छोड़ दिया जाए, बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए!’’