दुख भरे दिन बीते रे भैया, स्कूल पहुंचाएगी मैया, पढ़ाई की ता-ता-थैया

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, स्कूल खुलने जा रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ने वाले बच्चे अब क्लासरूम में शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे. माताएं अपने बच्चों को केजी क्लास में पहुंचाने जाएंगी. बड़ी क्लास वाले बच्चे अपनी स्कूल बस या वैन का इंतजार करेंगे. हमें लगता है, स्थितियां सामान्य हो जाएंगी.’’ 

    हमने कहा, ‘‘पहली बात तो यह कि एसटी हड़ताल की वजह से स्कूल की बसें इन दिनों सवारियां लेकर बाहरगांव जाने लगी हैं. घर से स्कूल 10 किलोमीटर दूर है तो अभिभावक लाना-ले जाना कैसे कर पाएंगे? वे भी नौकरीपेशा हैं. स्कूल में जाने पर बच्चों को अटपटा लगेगा क्योंकि अब तक ऑनलाइन में उतनी एकाग्रता नहीं दिखाते थे. 

    सवाल गूगल में देखकर हल कर लेते थे. टेबल (पहाड़े) याद नहीं रहने पर कैल्कुलेटर इस्तेमाल करते थे. अब स्कूल की प्रत्यक्ष पढ़ाई में चीटिंग नहीं चलेगी. बच्चे कलम चलाना या लिखना भूल गए हैं, ऐसी हालत में उन्हें अपनी पढ़ाई पटरी पर लाने के लिए काफी मेहनत करनी होगी.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इसके अलावा जो विद्यार्थी स्कूल जाएंगे, उन्हें लगातार मास्क पहनना व एक दूसरे से दूरी बरतनी पड़ेगी. स्पोर्ट वगैरह भी नहीं हो पाएंगे क्योंकि कोई किसी को टच नहीं कर सकता. लाइफ पूरी तरह नॉर्मल नहीं हुई है.’’ हमने कहा, ‘‘बच्चों पर भरोसा कीजिए. वे अपने को परिस्थिति के मुताबिक ढाल लेते हैं. हर कोई चाहता है कि कोरोना की दहशत मिट जाए और लाइफ पूरी तरह रेगुलर या पूर्ववत बन जाए.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, चाहते तो सब हैं लेकिन कोरोना का बेहद खतरनाक वेरिएंट आमिक्रान द. अफ्रीका से निकलकर दुनिया में दहशत मचा सकता है. इसलिए फिर से लोगों को डर लगने लगा है.’’ हमने कहा, ‘‘इतना डरेंगे तो कैसे काम चलेगा. हमारी सलाह है- गम नहीं कर मुस्कुरा, जीने का ले ले मजा!’’