कांग्रेस में बुजुर्गों की बारी पुराने नेताओं को नई जिम्मेदारी

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कांग्रेस हाशिये पर चले गए अपने बुजुर्ग नेताओं को फिर से सम्मानपूर्वक नई जिम्मेदारी देना चाहती है. इस संबंध में आपकी क्या राय है?’’

    हमने कहा, ‘‘इस बारे में पुरानी कहावत है- बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम! जब जवान नेताओं पर भरोसा कम हो जाए तो ओल्ड इज गोल्ड समझकर बूढ़े नेताओं को जिम्मेदारी देने की मजबूरी आ जाती है. कांग्रेस अपने बुजुर्ग नेताओं में फिल्म बाहुबली के वफादार खानदानी गुलाम कटप्पा को खोज रही है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, बुजुर्ग नेताओं की हालत यह रहती है कि मुंह में दांत नहीं और पेट में आंत नहीं! आंख धुंधला जाती है और कान से कम सुनाई देता है. जब बीजेपी ने आडवाणी और मुरलीमनोहर जोशी जैसे वयोवृद्धों को परामर्शदाता मंडल रूपी वृद्धाश्रम में डाल रखा है तो कांग्रेस को क्या पड़ी है कि वह खोजबीन कर अपने बुजुर्ग नेताओं को लाए और उनके थके हुए कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ लादे! पार्टी अपने आशियाने में हाशिये में पड़े लोगों को क्यों लाना चाहती है? उनका दौर खत्म हो जाने से वे न तो दौरा कर सकते हैं, न जोशीला भाषण दे सकते हैं.’’

    हमने कहा, ‘‘हाशिया बड़े काम की चीज है. टीचर छोटी कक्षाओं में ही छात्रों को कॉपी में हाशिया छोड़ना सिखाते हैं. फाइल के हाशिये में छोड़ी गई जगह पर अफसर और मंत्री अपनी टिप्पणी लिखा करते हैं. हाशिये पर चले गए नेता होशियार भी तो हो सकते हैं. उनके पास अनुभव की अनमोल पूंजी होती है. वे अपनी सोच से पार्टी की टीम के कोच बन सकते हैं.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, युवा नेताओं के व्यक्तित्व में आकर्षण और दिल में जोश होता है. वे कुछ नया कर गुजरने की सोचते हैं.’’

    हमने कहा, ‘‘कांग्रेस में युवा नेता टिकते ही कहां हैं? ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, आरपीएन सिंह पार्टी छोड़कर चले गए. इसलिए अब 137 वर्ष पुरानी ग्रैंड ओल्ड पार्टी ओल्ड या एल्डरली नेताओं पर भरोसा कर रही है जो इस उम्र में ‘दलबदल’ या ‘दिलबदल’ नहीं करेंगे और कांग्रेस के बरामदे में पड़े रहकर खांसते-खखारते रहेंगे.’’