पड़ गया बहस का अकाल, सवाल पूछने से मचता है बवाल

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी और जीएसटी जैसे नाजुक मुद्दों पर सवाल उठाकर क्यों बवाल मचाना चाहता है? उसे मौन रहना चाहिए. कहा गया है- मौनं सम्मति लक्षणं! जब कौरव सभा में पांचाली का चीरहरण हो रहा था तब भी तो भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य मौन थे. महात्मा गांधी के 3 बंदरों में से भी तो एक मुंह पर उंगली रखकर मौन रहता है.’’ 

    हमने कहा, ‘‘जहां जानने की जिज्ञासा हो, वहां सवाल तो पूछना ही पड़ता है. सवाल सनातन काल से चले आ रहे हैं. लोगों को आज तक इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया कि पहले मुर्गी पैदा हुई या अंडा? अक्ल बड़ी या भैंस? हर व्यक्ति के दिल में खयाल आता है कि सवाल पूछे. सवाल है, इसीलिए तो जैसवाल, ओसवाल जैसे सरनेम हैं. 

    प्राचीन काल में शास्त्रार्थ के दौरान विद्वान एक दूसरे से सवाल पूछते थे जैसे कि ईश्वर सगुण है या निर्गुण? साकार है या निराकार? ब्रम्ह अकेला है या साथ में माया भी है? योग वशिष्ठ में भगवान राम ने अपनी जिज्ञासाओं को लेकर गुरु वशिष्ठ से अनेकों सवाल किए थे. सत्य तक पहुंचने के लिए सवाल करना जरूरी है.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सवाल को फिल्मी गीतों में भी महत्व दिया गया है. कुछ गीतों के मुखड़े सुनिए- एक सवाल मैं करूं, एक सवाल तुम करो, हर सवाल का जवाब ही सवाल हो! तुझे क्या सुनाऊं मैं दिलरूबा तेरे सामने मेरा हाल है, तेरी एक नजर की बात है, मेरी जिंदगी का सवाल है! दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें! शिरडी वाले साईबाबा, आया है तेरे दर पे सवाली! 

    कहते हैं कि प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेद्रप्रसाद जब छात्र थे तब गणित के प्रश्नपत्र में छपा था- 10 में से 5 सवालों का जवाब लिखो. राजेंद्र बाबू ने सभी सवालों के सही उत्तर के साथ लिखा- सभी सवाल हल कर दिए हैं, कोई भी 5 जांच लीजिए. राजेंद्र बाबू सभी प्रश्नों का उत्तर देने को तत्पर थे लेकिन आज की सरकार विपक्ष के किसी सवाल का जवाब देना नहीं चाहती. असुविधाजनक सवालों से बचने के लिए पीएम प्रेस कांफ्रेंस नहीं लेते. वे सिर्फ मन की बात सुना जाते हैं.’’