जुबान चलाने में क्या लगता, बन जाओ पार्टी प्रवक्ता चाहे हिल जाए तख्ता

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हम मुंहजोर और सीनाजोर हैं. बहस और हुज्जत करने में माहिर हैं. हमारे स्वभाव में अकड़ और भाषा पर अच्छी पकड़ है. लचर दलीलों को भी मजबूत बनाते हैं, जब बोलते हैं तो महफिल में छा जाते हैं. विपक्षी के तर्कों को काटते हैं. जिस डाल पर बैठे हैं, उसे छांटते हैं. आखिर जुबान चलाने में क्या लगता! बताइए, किसका हिलाना है तख्ता? हमें पार्टी प्रवक्ता बनाइए और हमारी बदौलत दुनिया में छा जाइए.’’ 

    हमने कहा, ‘‘पहले बताइए कि आपके विचारों में कितनी गहराई है क्योंकि इधर कुआं तो उधर खाई है. आपके इरादे हैं विकट, अनाप-शनाप बोलकर खड़ा कर देंगे व्यर्थ का संकट! कतरनी सी जुबान चलाएंगे तो कतर को नाराज करवाएंगे. आप अपनी बातों से ढाएंगे गजब तो खफा हो जाएंगे अरब! जोश दिखाएंगे बनकर अनाड़ी तो उबल पड़ेगी गल्फ या खाड़ी. क्यों मारते हैं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी?’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, प्रवक्ता की जुबान होती है बिना ब्रेक की गाड़ी, जिसे चलाने वाला हो सकता है अनाड़ी. पार्टी का गोल कर सकता है डब्बा, फिर कह सकता है- एक्सीडेंट हो गया रब्बा-रब्बा! हमें दीजिए एक मौका, बाउंड्री पार कर मार देंगे चौका.’’ 

    हमने कहा, ‘‘आप न तो सुशील हैं, न संवेदनशील. आपकी बात ले उड़ेगा सोशल मीडिया और परेशानी में पड़ेगा इंडिया. अरब मुल्कों से अपना अरबों रुपए का है कारोबार, लाखों लोगों को वहां मिला है रोजगार. वहां से आता फॉरेन एक्सचेंज, इसलिए अपनी सोच को करें चेंज.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सामने है 2024 का आम चुनाव और पार्टी को चलानी है रेत पर नाव. धर्म का मुद्दा उठाएंगे, तभी तो नैया पार लगाएंगे. हमें सिर्फ पार्टी की किस्मत संवारना है. बड़े नेताओं का काम विदेश में बिगड़ी बात को सुधारना है. उनके सामने है कसौटी, हम काटते रहेंगे चिकोटी.’’