घोड़ा घास से नहीं करता यारी, नेताओं की पार्टी से कैसी वफादारी

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जैसे शरीफ लोग एक पत्नीवृती होते हैं, वैसे ही नेताओं को एक पार्टी वृती होना चाहिए. पार्टी के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए कहना चाहिए- जनम-जनम का साथ निभाने को, सौ-सौ बार मैंने जनम लिए. जिस पार्टी से एक बार जुड़ गए उसे फेविकाल के जोड़ की तरह मजबूत रखना चाहिए.’’

    हमने कहा, ‘‘वो जमाना गया जब लोग जिंदगी भर एक ही पार्टी से जोंक की तरह चिपे रहते थे और कहते थे- जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां. पुराने नेता संकल्प रखते थे, आज के नेता विकल्प रखते हैं. वे कपड़ों की तरह पार्टियां बदलने में विश्वास रखते हैं. उनका मन कहता है- तू नहीं, और सही! वे सांप्रदायिक ब्रैंड की पार्टी छोड़कर सिक्यूलर ब्रैंड वाली पार्टी में बेहिचक जाने की तैयारी दर्शाते हैं. वे मौके पर चौका मारते हैं. उनकी हालत यह नहीं रहती कि अवसर चूके ग्वालिनी गावे सारी रात. जब लोहा गरम रहता है तभी पीट लेते हैं. यह उनकी प्रैक्टिकल पालिटिक्स है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज ऐसे दलबदलू मौका परस्त नेताओं की विश्वसनीयता बिल्कुल भी नहीं रह जाती. उनकी बेवफाई देखकर पार्टी कहती है- एक बेवफा से प्यार किया, उसपे दि निसार किया, हाय ये हमने क्या किया, हाय क्या किया. 5 साल मंत्री पद भोगने के बाद जिस थाली में खा रहे थे उसी में छेद करके चल दिए.’’

    हमने कहा, ‘‘जाने वाले को कौन रोक पाया है? उनकी पार्टी भी मनुहार करते हुए यह नहीं कहती- जाते हो जाओ पर जाओगे कहां, बाबूजी तुम ऐसा दिला पाओगे कहां! जैसे सर्कस के खिलाड़ी एक झूले से उछलकर दूसरा झूला पकड़ लेते हैं वैसी ही कलाबाजी दिखाते हुए नेता उछलकर दूसरी पार्टी का दामन थाम लेते हैं. वे राजनीति को शेयर मार्केट समझते हैं जिसमें अपनी धूर्तता मक्कारी और काइयांपन का इन्वेस्टमेंट करते हैं. यह सिलसिला चुनावी मौसम में तेज हो जाता है जिसे कोई भी सनसनीखेज नहीं मानता.’’