पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल पारित करवाते हुए देश की आधी आबादी को न्याय दिया है। हम समझते हैं कि इस वजह से महिलाएं खुशी से फूली नहीं समाई होंगी और बड़े उत्साह से बीजेपी को वोट देकर ‘इंडिया’ को झटका देंगी। ’’
हमने कहा, ‘‘महिलाओं में खासियत होती है कि वे किसी की नजरें देखकर उसकी नीयत भांप लेती हैं। उन्हें मालूम है कि बीजेपी ने उन्हें बुद्धू बनाया है। यदि यह पार्टी महिला आरक्षण के बारे में सचमुच गंभीर होती तो अभी 5 राज्यों में चुनाव में एक तिहाई सीटों पर महिलाओं को खड़ा कर देती। सरकार ने ऐसा गेम खेला है कि पहले 2026 में जनगणना होगी, फिर परिसीमन या डिजिपिटेशन होगा। यह सब निपट जाने के बाद महिला आरक्षण लागू होगा। इसका तात्पर्य है कि 2029 के आम चुनाव तक महिलाएं आरक्षण का बेकरार होकर इंतजार करती रहें। ’’
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज आरक्षण देना बस 2 मिनट में मैगी बनाने जैसा नहीं है। इसमें समय लगेगा। सरकार की मजबूरी देखते हुए महिलाओं को श्रद्धा और सबूरी रखनी चाहिए। कहते हैं धीरज का फल मीठा होता है। ’’
हमने कहा, ‘‘महिला आरक्षण को लटकाने की जरूरत ही नहीं थी। इसे जनगणना और परिसीमन से न जोड़ते हुए 73वें और 74वें संविधान संशोधन की तरह तत्काल लागू किया जा सकता था। अभी इस मुद्दे की हालत कुछ ऐसी है जैसे कोई व्यक्ति एक डंडे के आखिरी सिरे पर रस्सी से मूली बांध दे और गधे पर सवार हो जाए। मूली खाने के लालच में गधा मीलों दौड़ता चला जाएगा लेकिन मूली उसके मुंह में नहीं आएगी। इसलिए महिला आरक्षण सिर्फ एक झुनझुना है। लोग नहीं जानते कि कब बाबा मरेंगे और कब बैल बिकेंगे। ’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज आप महिला आरक्षण के मुद्दे चर्चा में गधे और बैल को क्यों ला रहे हैं? महिला आरक्षण को लेकर संदेह मत कीजिए क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है। ’’
हमने कहा, ‘‘जब परिसीमन में आबादी के आधार पर यूपी और बिहार की लोकसभा सीटें बढ़कर 222 हो जाएगी और दक्षिण भारत के 5 राज्यों की केवल 165 सीटें रह जाएगी तब एक नया विवाद जन्म लेगा और फिर महिला आरक्षण का विलक्षण मुद्दा उलझन में फंस जाएगा। ’’