प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को 75 फीसदी कर्ज देने की बाध्यता

  • सहकारी बैंकों पर कसता शिकंजा

Loading

देश में सहकारिता को बढ़ाने और समाज के घटकों को उसमें शामिल करने के उद्देश्य से सहकारी समितियों और सहकारी बैंकों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया जाता रहा. यह बात अलग है कि कुछ स्वार्थी लोगों की करतूतों की वजह से सहकार में भ्रष्टाचार घुस गया और बाड़ ही खेत को खाने लगी. इतने पर भी सहकारिता के उद्देश्य समाज और देश का उत्थान करनेवाले रहे. कृषि व डेयरी क्षेत्र में सहकारी आंदोलन ने उल्लेखनीय योगदान दिया. आज भी ग्रामीण व कस्बाई क्षेत्र की जनता सहकारी बैंकों पर विश्वास रखती है. जब सहकारी बैंकों में अनियमितता के मामले सामने आए तो रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप अपरिहार्य हो गया. अब हालत यह है कि रिजर्व बैंक के सख्त नियम सहकारी बैंकों के लिए परेशानी की वजह बन गए हैं.

निजी और सहकारी बैंकों के बीच भेदभाव

निजी बैंकों को अपना कारोबार बढ़ाने की छूट दी जा रही है. उनके लिए नियम उदार हैं जिससे वे मुनाफा कमा सकते हैं. इसके विपरीत सहकारी बैंकों पर कई तरह की बंदिशें लगाई जा रही हैं. इस वजह से ये बैंक पिछड़ते चले जा रहे हैं. नए नियम के तहत सहकारी बैंकों को अब अपने कुल अग्रिम का 75 प्रतिशत ऋण प्राथमिकतावाले क्षेत्रों (प्रायोरिटी सेक्टर) को देना होगा जिसकी सीमा पहले 40 प्रतिशत थी. इसमें एकदम 35 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई. इसके विपरीत निजी क्षेत्रों के बैंकों के लिए 40 प्रतिशत ऋण देने का नियम ही कायम रखा गया. इस नियम की वजह से सहकारी बैंकों का लाभ का मार्जिन काफी घट जाएगा और कई सहकारी बैंक वित्तीय संकट में घिर जाएंगे.

प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को कर्ज देने की बाध्यता

प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग या पीएसएल की 8 श्रेणियों में कृषि, सूक्ष्म व लघु मध्यम उद्योग, निर्यात, शिक्षा, किफायती आवास, समाज के कमजोर व अल्पसंख्यक वर्ग, सामाजिक बुनियादी निर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा आदि क्षेत्र शामिल हैं. इन ऋण प्राथमिकतावाले क्षेत्रों को काफी कम ब्याज पर लोन देना पड़ता है जिसमें बैंकों का प्राफिट मार्जिन घट जाता है. इसलिए प्राइवेट बैंक इन वर्गों को कर्ज देने से कतराते हैं. सरकार उन्हें बाध्य भी नहीं कर पाती. इसलिए रिजर्व बैंक केवल सहकारी बैंकों पर यह नियम थोप रहा है कि वे देश के विकास के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को कर्ज दें. ऐसा होने पर सहकारी बैंकों की हालत पतली हो जाएगी. सहकारी बैंकों के लिए यह नियम चरणबद्ध तरीके से लागू होगा. इन बैंकों को मार्च 2022 तक ऋण सीमा बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करनी होगी. इसके बाद मार्च 2023 तक कर्ज सीमा 60 फीसदी और 2024 तक बढ़ाकर 75 प्रतिशत करनी होगी. अगले ढाई वर्षों में यह नियम पूरी तरह लागू करना होगा.

मुनाफे पर गहरी चोट

यह कड़ा नियम सिर्फ सहकारी बैंकों पर ही लादा जा रहा है, निजी व सरकारी बैंकों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. उनके लिए कर्ज बांटने की सीमा 40 प्रतिशत ही कायम रखी गई है. ऐसी स्थिति में सहकारी बैंकों के पास कम मार्जिन वाला बिजनेस ही रह जाएगा. वह कर्ज भी मुश्किल से वसूल होता है. अधिक लाभ मार्जिन वाला कार्पोरेट लेंडिंग बिजनेस काफी कम रह जाएगा. यह भी संभव है कि कई कार्पोरेट ग्राहक टूटकर निजी या सरकारी बैंकों के पास चले जाएं.