गुजरात के छोटे से शहर जूनागढ़ में कभी नवाबी रियासत थी लेकिन वहां की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी हिंदुओं की थी. आजादी के समय जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने की इच्छा जताई थी तो जनता ने विद्रोह कर दिया था. नवाब महाबतअली खानजी को जान बचाकर पाकिस्तान भागना पड़ा था. इस तरह जनता की व्यापक इच्छा से जूनागढ़ भारत के साथ ही रहा. भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 650 से अधिक देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कराया.
हैदराबाद के निजाम की अकड़ भी उनके सामने नहीं चल पाई जो अपने को स्वतंत्र देश घोषित करना या पाकिस्तान से मिलना चाहता था. बिस्मार्क ने यूरोप के एकीकरण का जो काम किया था, उससे भी बड़े चुनौतीपूर्ण काम को लौह पुरुष सरदार पटेल ने अंजाम दिया था. अंग्रेज तो यहां से जाते समय ऐसे राजे-रजवाड़ों को छोड़ गए थे जो अपनी रियासतों में अपनी सेना व खजाना रखते थे और जनता पर मनमाना जुल्म ढाते व शोषण करते थे. इन रजवाड़ों की अपनी करेंसी थी. तब जयपुर, ग्वालियर, इंदौर जैसे राजघरानों का अपना दबदबा था. सरदार पटेल की सूझबूझ व दबाव-प्रभाव की वजह से ही भारत गणतंत्र बन सका.
अंग्रेजों की कुटिलता
आजादी की शर्तों के अनुसार, रजवाड़ों को भारत या पाकिस्तान में से किसी में विलय करने या दोनों से अलग रहकर स्वतंत्र शासन चलाने की छूट दी गई थी. यह अंग्रेजों की बड़ी शरारत थी कि भारत अस्थिरता में घिर जाए लेकिन इसे कामयाब नहीं होने दिया गया. अब आजादी के 75वें वर्ष में जूनागढ़ के नवाब के वंशज मोहम्मद जहांगीर खानजी ने कश्मीर की तरह ही जूनागढ़ पर भी पाकिस्तान का दावा ठोंकने की अपील की है और कहा है कि पाकिस्तान सरकार को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जूनागढ़ का मुद्दा भी उतने ही जोर-शोर से उठाना चाहिए जिस तरह कश्मीर का मुद्दा उठाया जाता है. यह मांग अत्यंत शरारतपूर्ण है जिसका दूर-दूर तक कोई औचित्य नहीं है. जूनागढ़ किसी भी तरह पाकिस्तान के भूभाग से नहीं जुड़ा था. यह रियासत तीन तरफ से भारत से घिरी थी लेकिन तत्कालीन नवाब की दलील थी कि अरब सागर के जरिए वो कराची से जुड़ा है. दोनों के बीच 300 मील की दूरी है. भारत सरकार ने नवाब का मन बदलने की कोशिश की. तत्कालीन गृह सचिव वीपी मेनन ने नवाब को पत्र लिखकर कहा कि वो पाकिस्तान के साथ अपने रजवाड़े के विलय का फैसला वापस ले लें. नवाब नहीं माना तो जूनागढ़ की जनता ने उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया. तब नवाब को रियासत छोड़कर पाकिस्तान भागना पड़ा.
भारत भी उठा सकता है सिंध व बलूचिस्तान का मुद्दा
बलूचिस्तान उस समय कलात कहलाता था. वहां के अमीर (शासक) ने भारत के साथ शामिल होने की इच्छा जताई थी लेकिन पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा कर लिया. आज भी वहां की जनता पाकिस्तान से आजाद होना चाहती है. पाकिस्तान ने सिंध पर भी जबरन कब्जा बनाए रखा जहां की हिंदू आबादी अत्यंत असुरक्षित है. वहां हिंदू लड़कियों का अपहरण व जबरन निकाह कर लिया जाता है जिसकी कोई सुनवाई नहीं है. यदि पाकिस्तान ने जूनागढ़ का मुद्दा उठाया तो भारत भी बलूचिस्तान और सिंधु मुक्ति की बात करेगा. बेहतर होगा कि पाकिस्तान पुराने जख्म न कुरेदे. इतिहास में जो होना था, वो हो गया. उससे आगे बढ़ने में ही समझदारी है.