नहीं सुनी दुहाई, संघ स्वयंसेवक की काली टोपी उतरवाई

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    होने को कुछ भी हो सकता है. बीजेपी के पितृ संगठन आरएसएस के स्वयंसेवक बड़े ही आत्माभिमान के साथ काली टोपी पहनते हैं. इसे धारण करते ही उनका राष्ट्रप्रेम हिलोरें मारने लगता है. इस टोपी का रंग काला होने से उस पर कोई दाग लग ही नहीं सकता जबकि सफेद टोपी पर कभी भी कालिख लगने की आशंका बनी रहती है. जिसने भी काली टोपी का ईजाद किया, वह बड़ा दूरदर्शी रहा होगा. ऐसी गरिमामयी आरएसएस वर्कर की टोपी वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी की सभा में उतरवा ली गई. पुलिस के जवानों ने टोपी की कोई कद्र नहीं की.

    उन्हें आदेश रहा होगा कि सभा में कुछ भी काला नहीं होना चाहिए वरना दाल में काला हो सकता है. इसलिए काला झंडा, काली शर्ट और काले मास्क को अनुमति नहीं थी. आरएसएस कार्यकर्ता ने आईडी दिखाया, फिर भी उसकी काली टोपी उतरवा ली गई. इसी टोपी को पहनकर वह संघ की शाखा में जाता रहा होगा लेकिन शाखा और सभा में अंतर रहता है. सभा में काले दिलवाला या काली करतूतों वाला व्यक्ति सफेदपोश बनकर जा सकता है लेकिन काली टोपी वाला नहीं. सावधानी इसलिए बरती गई क्योंकि काला कपड़ा विरोध प्रदर्शन के काम आता है.

    कुछ लोग बांह पर काली पट्टी बांध कर विरोध प्रदर्शन भी करते हैं. पुलिस ने सोचा होगा कि गर्म मौसम के अलावा सभा की गर्मी में यदि इस स्वयंसेवक ने अपनी काली टोपी उतारी और उसे हिलाकर पसीना सुखाने लगा तो मीडिया तुरंत लिख देगा कि किसी ने विरोध स्वरूप काला कपड़ा लहराया. ऐसी स्थिति से बचने के लिए टोपी उतरवा ली गई. टोपी या पगड़ी सिर्फ उतारी नहीं, बल्कि उछाली भी जाती है. एक जमाना था जब लोग खुले सिर कहीं नहीं जाते थे. सिर पर टोपी लगाने के बाद ही घर से बाहर कदम रखते थे. बहुत पहले एक फिल्म भी आई थी जिसका नाम था- काली टोपी लाल रूमाल!’’