बाल-बाल बचते हैं नेता छोटी-छोटी घटनाओं को बड़ा बताकर घटिया पब्लिसिटी

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नेताओं को मामूली सर्दी-जुकाम भी हो जाए तो खबर बन जाती है. वे रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल गए तो उतनी सी बात में फिक्र का माहौल बना दिया जाता है. चर्चा में बने रहना कोई नेताओं से सीखे. उनसे जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं को तिल का ताड़ बनाकर पेश किया जाता है. बाल-बाल बचने में कोई नेताओं का हाथ नहीं पकड़ सकता. ऐसा दिखाया जाता है मानो उन पर कोई बड़ा संकट या बला आई थी जो टल गई. कोई नेता केले के छिलके पर पैर पड़ने से या कीचड़ में रपटने से गिर जाए तो ऐसी खबर बनती है, मानो दुनिया हिल गई.

जिस नेता को बहुत समय प्रचार का अवसर न मिला हो, वह कुछ ऐसी हरकत करता है कि तुरंत चर्चा में आ जाए. कभी एक साथ ज्यादा लोगों के चढ़ जाने से किसी नेता का मंच टूटता है तो नेता के बाल-बाल बचने की खबर आती है. अब यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बारे में समाचार आया है कि वे दीपोत्सव (Deepotsav) कार्यक्रम में लगी आग से बाल-बाल बच गए. हुआ यह कि प्रयागराज (Prayagraj) में आरती के दौरान मंत्री के निकट खड़े होकर आरती करने वाले शख्स के हाथ से आरती का पात्र नीचे गिर गया. इससे मेज और उस पर लगे सामान में आग लग गई.

आग का गोला डिप्टी सीएम मौर्य (Keshav maurya) पर नहीं गिरा वर्ना वे झुलस सकते थे. हमारे सेना के बहादुर जवान दुश्मन की गोलियों या बम से बाल-बाल बचते हैं लेकिन उनकी कोई खबर नहीं बनती. क्रिकेट खिलाड़ी गेंदबाज के बाउंसर से बाल-बाल बचता है लेकिन इसे कोई महत्व नहीं दिया जाता. सारे नाज-नखरे सिर्फ नेताओं के होते हैं. बाल-बाल बचने का एकमात्र हक उन्हीं को है क्योंकि वे वीवीआईपी हैं. सामान्य इंसान खतरों से खेलने के लिए बना है परंतु नेता के बदन पर एक खरोंच तक नहीं आनी चाहिए. उसके आसपास भी जरा सा कुछ हुआ तो उसे बहुत बड़ी बात बताकर घटिया पब्लिसिटी की जाती है. हादसा तो सिर्फ एक बहाना है, असली मकसद जमाने को दिखाना है!