रजनी को राजनीति से परहेज क्यों ?

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दक्षिण भारत के सुपर स्टार रजनीकांत (Rajinikanth) समझ गए कि फिल्मों के धांसू एक्शन राजनीति के अखाड़े में काम नहीं आते. वहां न तो किसी गंजे के सिर पर रगड़कर माचिस की तीली सुलगानी पड़ती है, न हवा में उछालकर सिगरेट मुंह में कैच करने का कमाल दिखाना पड़ता है. रील लाइफ और रीयल लाइफ में जमीन-आसमान का अंतर रहता है इसलिए रजनीकांत जैसे एनर्जेटिक हीरो ने खराब सेहत का बहाना करके चुनावी राजनीति (Political Party) में नहीं उतरने का फैसला किया है. रजनीकांत को कौन बताए कि खराब स्वास्थ्य और अधिक उम्र के बावजूद लोग राजनीति में शान से रहते हैं.

लालूप्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की किडनी सिर्फ 25 प्रतिशत काम कर रही है लेकिन वे जेल में रहकर भी राजनीति का सूत्र संचालन करते हैं. शरद पवार 80 के होकर भी एक्टिव हैं. 70 वर्ष के मोदी सरदारों के बीच जाकर पगड़ी पहन लेते हैं और बंगाल का चुनाव सामने देखते हुए गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसी दाढ़ी बढ़ा रहे हैं. अमित शाह कोरोना(Corona) से अच्छे होने के बाद नए सिरे से कारगुजारी दिखा रहे हैं. रजनी को राजनीति में  रहना चाहिए. स्वास्थ्य तो सोनिया का भी ठीक नहीं रहता, फिर भी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं और जब तक राहुल राजी नहीं हो जाते, तब तक अपनी कुर्सी नहीं छोड़ेंगी. अभिनेता से नेता बनने में सिर्फ शुरू के 2 अक्षर निकाल देने पड़ते हैं. एक्टिंग तो राजनीति में भी बहुत काम आती है. हिमाचल प्रदेश जाओ तो वहां भी टोपी पहन लो, यूपी जाओ तो कहो कि मुझे गंगा मैया ने बुलाया है. रजनीकांत बड़े स्पष्टवादी हैं.

वे कहते हैं कि खराब सेहत के बावजूद राजनीति में आने का एलान कर वीरता नहीं दिखाना चाहता. मुझे अपने समर्थकों की परेशानी नहीं बढ़ानी है. रजनीकांत चाहें तो राहुल गांधी से सीखें कि पार्ट-टाइम तरीके से भी राजनीति की जा सकती है. मन में आया तो कुछ सक्रियता दिखाई, नहीं तो अचानक छुट्टी बिताने चल दिए विदेश! ऐसे में टेंशन नहीं बढ़ता. रजनीकांत सोचकर देखें कि दक्षिण भारत की राजनीति में एमजीआर, जयललिता की परंपरा को कौन आगे बढ़ाएगा? उनके लिए खुला मैदान है. वे पीछे हटेंगे तो कमल हासन को पूरी तरह चांस मिल जाएगा. रजनीकांत किंग नहीं बनना चाहते तो किंगमेकर ही बन जाएं. खुद चुनाव न लड़ें, पार्टी बनाकर बाहर से लोगों को गाइड करें. रिमोट कंट्रोल तो मजे में चल सकता है!