Nirmala Sitharaman

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    केंद्र सरकार ने पहले तो निजी तेल कंपनियों को पेट्रोल-डीजल (Petrol Diesel Rate) व कुकिंग गैस के दाम तय करने की खुली छूट दे दी और अब इन पदार्थों की बेतहाशा मूल्यवृद्धि होने पर सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है. यह जनता से विश्वासघात है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman)ने कहा कि सरकार का पेट्रोल की कीमत पर कोई नियंत्रण नहीं है. तेल कंपनियां कच्चे तेल का आयात करती हैं, रिफाइन करती हैं और वितरित करती हैं.

    यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें कीमत में कटौती के अलावा कोई भी उत्तर जनता को संतुष्ट नहीं कर सकता. वास्तविकता सामने लाने के लिए मैं जो भी कहूं, उससे लोग यही कहेंगे कि मैं उत्तर देने से बच रही हूं. ऐसी बात कहकर वित्तमंत्री ने अपनी मजबूरी जाहिर कर दी है लेकिन कुछ प्रश्न हर किसी के दिमाग में कौंधते हैं जैसे कि (1) क्या तेल कंपनियां सरकार से ऊपर की हैसियत रखती हैं? सरकार उन्हें सख्ती के साथ मूल्यवृद्धि करने से क्यों नहीं रोकती. जब छूट दे सकती है तो वापस क्यों नहीं ले सकती? (2) यह बात जगजाहिर हो चुकी है कि पेट्रोल-डीजल की मूल कीमत में लगभग 60 प्रतिशत केंद्र व राज्य के टैक्स जोड़े जाते हैं. उसमें कटौती करके सरकार जनता को राहत दे सकती है.

    परिवहन की लागत व डीलर का कमीशन इतना अधिक नहीं है. दरअसल एक्साइज ड्यूटी और वैट ही ज्यादा है. वित्तमंत्री इसमें कटौती करें. उन्होंने अन्य वस्तुओं के समान पेट्रोल-डीजल को वैट के दायरे में क्यों नहीं लाया? नेपाल, लंका पाकिस्तान में 60 रुपए से भी कम दर पर बिकनेवाला पेट्रोल भारत में क्यों सेंचुरी तक जा पहुंचा है? वित्तमंत्री मजबूरी जताने की बजाय एक्शन लें. जनता को कब तक इसी तरह निचोड़ा जाएगा?