ब्याज पर ब्याज वसूली का मामला बैंकों के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

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सरकार जनहित में कोई निर्णय तो लेती है लेकिन आमतौर पर उसे लागू करने में काफी सुस्ती बरती जाती है. लोन मोरेटोरियम का मामला भी कुछ ऐसा ही है जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सरकार को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी(Coronavirus) के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक (Indian reserve bank) की ऋण स्थगन योजना के तहत 2 करोड़ रुपए तक के कर्जदारों के लिए ब्याज माफी पर केंद्र सरकार को जल्द से जल्द अमल करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि आम आदमी की दिवाली सरकार के हाथ में है. लोगों की दुर्दशा को समझा जाना चाहिए. कोर्ट ने केंद्र से 2 नवंबर तक जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों- न्या. अशोक भूषण, न्या. आर. सुभाष रेड्डी और न्या. एमआर शाह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार को इस मामले में कुछ ठोस कदम उठाने होंगे. पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार ने ब्याज पर ब्याज माफी को लेकर स्वागत योग्य फैसला लिया है, लेकिन आपने इस बारे में अभी तक किसी को कोई आदेश जारी नहीं किया है. आपने केवल हलफनामा ही दाखिल किया है. कोर्ट की चिंता यह है कि ब्याज माफी का लाभ कैसे दिया जाएगा? कोर्ट को यह बताया जाए कि कर्ज पर ब्याज माफी नीचे तक गई है या नहीं! संबंधित बैंकों को सर्कुलर कब जारी किया जाएगा?

कर्जदारों की शिकायत

इसके पूर्व व्यक्तिगत कर्जदारों की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि बैंक ने ब्याज पर ब्याज लेना शुरू कर दिया है इसलिए इसे तुरंत रोकने की जरूरत है. याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि सरकार ने बहुत ही सीमित तरीके से अपना रुख बताया है और बैंकों को ब्याज पर ब्याज नहीं लगाने के बारे में अब तक कोई निर्देश नहीं दिया गया है. इस पर पीठ ने कहा कि रिजर्व बैंक कहता है कि सब हो गया. हर कोई यही कह रहा है कि सब कुछ हो गया, इस बारे में कोई सवाल नहीं है. लेकिन हम पूछते हैं कि कब हुआ? आपको इस छोटे से फैसले को लागू करने के लिए एक महीने का वक्त क्यों चाहिए? कृपा कर आम लोगों की दुर्दशा देखें. जब आपने पहले ही मदद करने का फैसला कर लिया है तो यह भी सोचें कि आम आदमी की दिवाली सरकार के हाथ में है.

गैर चूककर्ता ही लोन पुनर्गठन के पात्र

कोरोना महामारी को देखते हुए सिर्फ 1 मार्च 2020 तक किस्त अदायगी में चूक नहीं करने वाले मानक ऋण खातों का पुनर्गठन होगा. रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया कि ऐसे खाते ही अगस्त में पुनर्गठन के पात्र हैं जिनमें कोई चूक (डिफाल्ट) नहीं हुई थी. इसके अलावा ऐसे ऋण खाते जिनमें 1 मार्च 2020 को 30 दिन से अधिक बकाया था, वे कोरोना समाधान मसौदे के तहत पुनर्गठन के पात्र नहीं हैं.

क्रेडाई ने कहा, हम इससे बाहर हैं

रियल इस्टेट की संस्था क्रेडाई की ओर से कहा गया कि हम लोन मोरेटोरियम से बाहर हैं. हमें कहा गया है कि हम बैंकों के साथ समस्या का हल निकालें लेकिन बिल्डर जिन समस्याओं और दिक्कतों से जूझ रहे हैं, उसका यह जवाब नहीं है. जब कोर्ट ने पूछा कि 2 करोड़ तक लोन लेने वालों को फायदा देने की योजना पर कैसे अमल हो रहा है तो वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इसे पहले ही अमल में लाया जा चुका है. चूंकि संख्या काफी बड़ी है इसलिए इसे आगे भी पूरा किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हर श्रेणी में वसूली का एक अलग तरीका है इसलिए हितधारकों से चर्चा कर इसके तौर-तरीकों का पालन करना चाहिए.

बैंकों को कोर्ट के आदेश की परवाह नहीं

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बैंकों को इस मामले में जारी आदेश या निर्देश की परवाह नहीं है और वे मनमानी कर रहे हैं, इसलिए कोर्ट अंतरिम आदेश जारी करे. अदालत को भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से 9 अक्टूबर को दायर हलफनामे पर विचार करना चाहिए. रिजर्व बैंक ने इस हलफनामे में कहा था कि मोरेटोरियम को 6 महीने से ज्यादा नहीं बढ़ाया जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो आर्थिक संकट बढ़ेगा और 6 महीनों का मोरेटोरियम उधार लेने वाले के व्यवहार को प्रभावित करेगा तथा निर्धारित भुगतानों को फिर से शुरू करने में देरी के जोखिम बढ़ जाएंगे.