वर्ल्ड कप टीम से ज्यादा चर्चा धोनी के मेंटॉर बनने की

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    अगले महीने से शुरू होने वाले टी-20 वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम की घोषणा से ज्यादा चर्चा भारतीय टीम के सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को मेंटॉर यानी मार्गदर्शक के रूप में टीम में शामिल करने की है. यह फैसला हर किसी को हैरान करने वाला था, क्योंकि 2014 में टेस्ट क्रिकेट से अचानक संन्यास लेने वाले धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से दूरी बनाए हुए थे और अभी केवल अपनी आईपीएल टीम चेन्नई के लिए ही सक्रिय हैं. कई लोग इस फैसले को मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं, क्योंकि टी-20 मैचों के मामले में धोनी का अनुभव मौजूदा टीम इंडिया टीम के कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री से कहीं ज्यादा है. भारत को पहला टी-20 वर्ल्डकप भी धोनी की कप्तानी में ही मिला था.

    विराट कोहली सफल बल्लेबाज हैं, अच्छे कप्तान भी हैं, लेकिन आईसीसी के प्रमुख टूर्नामेंट में न जाने क्यों सफलता उनसे अब तक दूर है! 2013 के बाद से अभी तक भारत ने कोई बड़ा आईसीसी टूर्नामेंट नहीं जीता है. इसी सूखे को खत्म करने के लिए बीसीसीआई ने महेंद्रसिंह धोनी को टीम के लिए राजी किया है. टीम इंडिया के मामले में लगातार इस तरह की जानकारियां सामने आ रही थीं कि ड्रेसिंग रूम में कुछ दिक्कत है. वर्ल्ड कप के लिए चुनी गई टीम के लगभग हर खिलाड़ी को धोनी अच्छी तरह से जानते हैं, उनके साथ खेल चुके हैं या उनका खेल करीब से देखा है. इसलिए खिलाड़ी की ताकत और कमजोरी दोनों का उन्हें सही अंदाजा है. वैसे भी धोनी की पहचान नए खिलाड़ियों को आगे लाने वाले कप्तान की रही है.

    दबाव से टीम को बाहर निकालना जानते हैं

    दबाव में टीम को कैसे बाहर लाया जाए, धोनी को अच्छी तरह से आता है. लेकिन यहां वर्ल्ड कप में धोनी मैदान के बाहर होंगे. मैदान पर खिलाड़ियों को ही अपना दम दिखाना होगा. धोनी की नियुक्ति को कुछ लोग भविष्य की उनकी भूमिकाओं से भी जोड़कर देख रहे हैं. टी-20 वर्ल्ड कप बतौर कोच, रवि शास्त्री का आखिरी टूर्नामेंट है. बीसीसीआई उनको दोबारा ये जिम्मेदारी देती है या नए कोच की तलाश होगी, यह भविष्य के गर्भ में है. धोनी अब तक कोच की भूमिका में आने से इनकार करते रहे हैं. क्रिकेट के जानकारों का भी मानना है कि किसी पूर्व खिलाड़ी को कोच चुनने और संन्यास के बीच कम से कम 3 से 4 वर्ष का कूलिंग ऑफ पीरियड होना चाहिए. इससे तमाम तरह के पूर्वाग्रहों को कम करने में मदद मिलती है.

    एक साथ कई शक्ति केंद्र बनने की चिंता

    धोनी के चयन से एक चिंता टीम इंडिया में एक साथ कई शक्ति केंद्र बनने की है. टीम को इससे उलझने से बचाने के लिए जरूरी है कि कोहली, शास्त्री और धोनी से लेकर उपकप्तान रोहित शर्मा तक की भूमिका बहुत स्पष्ट हो. टूर्नामेंट के पहले इन चारों को बैठाकर दायरे तय करने की जरूरत है. इससे बेवजह के टकराव को टालने में मदद मिलेगी और मैदान में खिलाड़ी एक रणनीति के साथ खेलते दिखेंगे. रोहित शर्मा टी-20 फॉर्मेट में आईपीएल के सबसे सफल कप्तान रहे हैं. धोनी के पास भी इस फॉर्मेट का अच्छा अनुभव है. अगर टीम के ये चारों स्तंभ आपस में मिलकर काम करने में सफल हो जाते हैं, तो टीम की एक बड़ी समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी.

    अगर तालमेल या अहं का टकराव शुरू हो गया तो फैसला मुसीबत बन सकता है. जब सौरव गांगुली कप्तान थे तो सुनील गावस्कर ने भी यह भूमिका निभाई थी. महेंद्र सिंह धोनी को टीम का हिस्सा बनाने का फैसला सही वक्त पर लिया गया फैसला है, लेकिन उनका इस्तेमाल किस तरह से किया जाना है और इसका नतीजा क्या होगा, यह वक्त बताएगा. टीम की रणनीति तैयार करने के लिए बीसीसीआई और बाकी लोगों के पास अभी काफी वक्त है. आर अश्विन की 4 साल बाद टी-20 में हुई वापसी क्रिकेटप्रेमियों के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है.