30 वर्षीय तेजस्वी की मोदी को कड़ी चुनौती, नमो की वजह से मिली NDA को सफलता

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बिहार विधानसभा चुनाव(Bihar Election) में महागठबंधन ने एनडीए को जिस प्रकार जम कर टक्कर दी, उसे देखते हुए शिवसेना नेता संजय राऊत ने कहा कि इस चुनाव के ‘मैन ऑफ द मैच’ तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) हैं. कई बार मैच में हार हो जाती है लेकिन मैन ऑफ द मैच किसी और को मिलता है. राऊत ने मत व्यक्त किया कि तेजस्वी राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा चेहरा उभरे हैं और ये चुनाव उनके इर्द-गिर्द ही हुआ है. नीतीश कुमार(Nitish kumar) को सोचना होगा कि 3 बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर क्यों पहुंची? रिजल्ट में भले ही जदयू पिछड़ गई है लेकिन बीजेपी को नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना होगा. महाराष्ट्र में सबक सीखने के बाद बीजेपी नीतीश को सीएम बनाने को तैयार है.

तेजस्वी ने अपने दम पर महागठबंधन को जीत की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया था. इस चुनाव में न तो लालू यादव का कोई पोस्टर लगा था, न राबड़ी देवी कहीं नजर आईं. उम्मीदवार तय करने से लेकर प्रचार तक राजद की पूरी कमान अकेले तेजस्वी ने संभाल रखी थी. लालू व राबड़ी पर उनके रिश्तेदारों का दबाव था लेकिन तेजस्वी के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था. उन्होंने लालू के समान सिर्फ यादव-मुस्लिम वाली राजनीति नहीं की, बल्कि अन्य वर्गों को भी मौका दिया तथा युवाओं के नेता बनकर उभरे. तेजस्वी ने चुनाव प्रचार में सर्वाधिक 251 रैलियां की थीं. उन्होंने मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी. उनका 10,00,000 नौकरी देने का वादा भी युवाओं के लिए काफी लुभावना रहा. सोचा जा सकता है कि यदि महागठबंधन को सफलता मिलती तो तेजस्वी देश के सर्वाधिक युवा मुख्यमंत्रियों में से एक होते. यदि एनडीए को 125 सीटें मिलीं तो महागठबंधन ने भी 110 सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखा दी. उन्होंने नीतीश कुमार को ‘पलटू चाचा’ कहकर करारा झटका दिया. लगातार यह एहसास होता रहा कि तेजस्वी का नेतृत्व प्रभावी बनता जा रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों से बीजेपी को बड़ी मदद मिली. नीतीश कुमार का ग्राफ लगातार नीचे जाता रहा और इसका फायदा बीजेपी को हुआ. इसके बाद बीजेपी बढ़े हुए उत्साह के साथ बंगाल और यूपी के विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाएगी. नीतीश कुमार ने यदि फिर सीएम पद की शपथ ली तो वे सिर्फ नाम के या मजबूर मुख्यमंत्री रहेंगे. सारी ताकत बीजेपी के पास रहेगी और वह मनचाहे महत्वपूर्ण मंत्री पद लेकर रहेगी. एक निष्प्रभावी और कमजोर सीएम बनकर रहने और बात-बात में बीजेपी का मुंह देखने की बजाय नीतीश के लिए केंद्र में जाना बेहतर विकल्प रह सकता है. जब एनडीए की 125 सीटों में से बीजेपी की 74 सीटें हैं और जदयू सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई हो तो समझा जा सकता है कि किसकी मर्जी चलेगी! बीजेपी को इस चुनाव में 21 सीटों का फायदा हुआ जबकि जदयू की 28 सीटें घट गईं. बिहार में बीजेपी जदयू से बड़ी पार्टी बन गई लेकिन फिर भी बीजेपी ने साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही होंगे. सुशील मोदी ने कहा कि इसमें कोई भ्रम नहीं है, चुनाव से पहले ही नीतीश कुमार को सीएम बनाने का फैसला ले लिया गया था, जिसे कायम रखा जाएगा. नीतीश को सीएम बनाने का कारण यह भी है कि बिहार में बीजेपी के पास अन्य राज्यों के समान मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं रहा. उपमुख्यमंत्री रहे सुशीलकुमार मोदी की यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, मध्यप्रदेश के सीएम शिवराजसिंह चौहान अथवा कर्नाटक के सीएम येदियुरप्पा से कोई तुलना नहीं की जा सकती.

यही वजह है कि सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाली जदयू के ‘सुशासन बाबू’ कहलाने वाले नेता नीतीश कुमार को बीजेपी सीएम पद पर बरकरार रखेगी. बिहार के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार, शराब बंदी की विफलता और रोजगार के मोर्चे पर फेल होने की वजह से नीतीश कुमार को सत्ता से हटाना चाहता था लेकिन ऐसे मतदाताओं में से अधिकांश ने नरेंद्र मोदी को ध्यान में रखकर एनडीए को वोट दिया. तेजस्वी यादव का नेतृत्व जिस तरह उभरा है, उसे देखते हुए भविष्य में प्रधानमंत्री मोदी के लिए वह बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. राहुल गांधी की तुलना में बिहार चुनाव में तेजस्वी का प्रभाव बेहतर नजर आया.