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    जिस गंभीर समस्या को बच्चों के पालक लंबे अरसे से महसूस कर रहे थे उसका बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने स्वयं संज्ञान लिया. राज्य के ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में स्कूली शिक्षा का बेहाल है और बच्चे पोषण आहार से भी वंचित हैं. बच्चे देश का भविष्य हैं लेकिन उनकी पूरी तरह उपेक्षा हो रही है.

    हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे और न्यायमूर्ति अनिल किल्लोर ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार व स्थानीय विकास संस्थाओं की लापरवाही पर अप्रसन्नता जताई और अगली सुनवाई तक हलफनामा दायर करने का आदेश दिया. यह भी कहा गया कि यदि आदेशानुसार शपथपत्र दाखिल नहीं किया गया तो केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव और राज्य के मुख्य सचिव को अदालत में हाजिर होना पड़ेगा.

    अदालत ने कहा कि न बिजली है न इंटरनेट है तो कैसे होगी ऑनलाइन पढ़ाई? हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 6 से 14 वर्ष के बच्चों की मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के लिए 2009 में कानून बनाया गया. इसी तरह 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत स्कूल जानेवाले बच्चों को पोषण आहार देने का प्रावधान किया गया. हालत इतनी खराब है कि महाराष्ट्र के दूरदराज क्षेत्रों में न तो स्कूल की अच्छी इमारतें हैं, न ही पर्याप्त शिक्षक उपलब्ध हैं. बच्चों को पढ़ाने के उपकरण भी मुहैया नहीं कराए गए. कई इलाकों में सड़कें तक नहीं हैं जिनमें बारिश के दौरान बच्चे स्कूल जा सकें.

    बुनियादी ढांचे के इस भारी अभाव को केंद्र व राज्य सरकार तथा स्थानीय जिम्मेदार एजेंसी ने आजतक गंभीरता से नहीं लिया. बच्चों की पढ़ाई को भारी नुकसान हो रहा है. कानून होने पर भी बच्चे शिक्षा व पोषण आहार से वंचित हैं. अदालत के जानकारी मांगने पर केवल गडचिरोली के जिलाधिकारी की ओर से हलफनामा दायर किया गया जबकि अन्य प्रतिवादियों ने आज तक कोई जवाब नहीं दिया.