राष्ट्रीय हैं गांधी घराना कभी राज्य की राजनीति में नहीं उतरा

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    यह सचमुच असामान्य है. हमेशा राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में छाया रहा गांधी घराना कभी राज्य की राजनीति में नहीं उतरा लेकिन पहली बार प्रियंका गांधी वाड्रा के रायबरेली या अमेठी सीट से उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में उतरने की संभावना जताई जा रही है. यह उनके परिवार के सदस्यों व पूर्वजों की परिपाटी से अलग कदम होगा. प्रियंका या कांग्रेस पार्टी इस तरह का फैसला क्यों कर रही है अथवा प्रियंका स्वयं क्यों विधानसभा चुनाव लड़ने को उत्सुक हो उठी हैं, इसकी कुछ न कुछ वजह अवश्य हो सकती है. वैसे यह बात सचमुच अटपटी लगती है कि कोई पोस्ट ग्रेजुएशन करनेवाला मैट्रिक का इम्तहान देने की सोचे. जो सांसदों को टिकट देने की क्षमता रखती हैं, वह प्रियंका खुद विधायक बनने के लिए चुनाव लड़ने की सोच रही हैं. यद्यपि प्रियंका ने अपनी ओर से चुनाव लड़ने या न लड़ने का स्वयं कोई संकेत नहीं दिया है लेकिन उनके ऑफिस की तरफ से चुनाव लड़ने की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं.

    खानदान में किसी ने नहीं लड़ा विधानसभा चुनाव

    प्रियंका गांधी के पूर्वज (पिता के नाना) जवाहरलाल नेहरू भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी नेता थे जो आजादी के पहले 1946 में बनी अंतरिम सरकार के भी प्रधानमंत्री थे. स्वाधीनता के बाद वे 17 वर्षों तक देश के पीएम रहे. वे इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव जीतकर आते थे. नेहरू के खिलाफ समाजवादी नेता डा. राममनोहर लोहिया खड़े होते थे लेकिन उनकी जमानत जब्त हो जाती थी. संसदीय लोकतंत्र में गहरी आस्था रखने वाले नेहरू चाहते थे कि लोकसभा में विपक्ष की सशक्त आवाज के रूप में लोहिया की मौजूदगी सुनिश्चित रहे. नेहरू अपनी नीतियों के कटु आलोचक लोहिया की खातिर किसी कांग्रेसी नेता से इस्तीफा दिलाकर उपचुनाव के लिए वह सीट खाली करवा देते थे. तब फूलपुर जैसी सीट से लोहिया चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंच जाते थे.

    इसी तरह रायबरेली की सीट पर पहले फिरोज गांधी चुनाव लड़ा करते थे. उनके निधन के बाद इंदिरा गांधी रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने लगीं. 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी की लहर थी. तब रायबरेली से इंदिरा के निर्वाचन को समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनौती दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहनलाल सिन्हा ने राजनारायण के पक्ष में फैसला देते हुए इंदिरा की सदस्यता रद्द कर दी. राजनारायण को मोरारजी देसाई ने अपनी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बना दिया. इंदिरा गांधी ने पहले दक्षिण भारत के चिकमगलूर और बाद में मेडक से चुनाव लड़ा तथा वीरेंद्र पाटिल को हराकर लोकसभा में पहुंचीं. 1980 में उन्होंने फिर रायबरेली से चुनाव लड़ा व देश की सत्ता संभाली. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. फिर रायबरेली से राजीव गांधी चुनाव जीते. 1991 में राजीव की हत्या के बाद यह सोनिया गांधी का चुनाव क्षेत्र बन गया. रायबरेली और अमेठी की लोकसभा सीटों से गांधी परिवार का जुड़ाव बना रहा. यह दोनों उनके गढ़ रहे हैं.

    स्मृति ईरानी से बदला लेना है

    पिछले 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को अमेठी चुनाव क्षेत्र में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने हराया था. प्रियंका की पहली पसंद अमेठी है जहां से विधानसभा चुनाव लड़कर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करेंगी ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी को चुनौती दी जा सके. इस तरह वे राहुल की हार का बदला लेना चाहती हैं. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी प्रियंका को सलाह दी है कि उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए. कांग्रेस तो उन्हें यूपी के मुख्यमंत्री कैंडिडेट के तौर पर भी देख रही है. वास्तविकता यह है कि सोनिया गांधी की सेहत खराब रहती है और राहुल का दबदबा कम हो गया है.