घोषणाएं तो बहुत लेकिन क्या कश्मीरी पंडित घाटी में बस पाएंगे

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कश्मीर घाटी से 30 वर्ष पहले बेदखल किए गए हिंदुओं की वापसी को लेकर कितनी ही घोषणाएं की गईं, परंतु ज्वलंत प्रश्न है कि क्या ये कश्मीरी पंडित(Kashmiri Pandits) वहां लौटकर पुन: बस पाएंगे अथवा जम्मू (Jammu and Kashmir) में ही रहेंगे? क्या घाटी में उनके सुरक्षित और सौहार्द्रपूर्ण माहौल में रहने की स्थितियां बन पाई हैं अथवा फिर कहीं उन्हें कट्टरपंथियों व आतंकियों (Terrorists)का शिकार न होना पड़े? दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है. जनवरी 1990 में दर्जनों बेकसूर हिंदुओं को खुलेआम मौत के घाट उतारा गया जिनमें जज, दूरदर्शन के निदेशक, केंद्रीय कर्मचारी, राजनीतिक कार्यकर्ता, शिक्षक, साहित्यकार भी शामिल थे. वहां कश्मीरी हिंदुओं के दुकान, मकान व प्रतिष्ठानों पर कब्जा कर लिया गया था.

महिलाओं पर अत्याचार होने लगे थे. लोगों को धमकी दी गई थी कि 24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो या मरने के लिए तैयार हो जाओ. चारों तरफ अराजकता छाई हुई थी. प्रशासन ठप था. राजनीतिक नेतृत्व इतना जुल्म होते चुपचाप देख रहा था. जिहादियों के आतंक की वजह से 3 लाख के करीब कश्मीरी पंडित सबकुछ छोड़कर घाटी से भागने को विवश हो गए. साधनसंपन्न रहे उन लोगों को बुनियादी जरूरतों से वंचित रहना पड़ा. उन्होंने जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में शरण ली. सरकार, राजनीतिक पार्टियों या मानवाधिकार आयोग ने भी इनकी दुर्दशा पर कोई ध्यान नहीं दिया. राजनीति ऐसी थी कि हिंदू का पक्ष लेने वाला सांप्रदायिक कहलाता था. सेक्यूलर होने का मतलब इस्लामिक दमन की अनदेखी करना था.

इन लाखों कश्मीरी पंडितों की बेबसी पर किसी को तरस नहीं आया. घाटी को पूरी तरह हिंदूविहीन बनाने की कुटिल साजिश के तहत इन पंडितों की या तो हत्या कर दी गई या आतंकित कर खदेड़ दिया गया था. अब दावा किया गया है कि सरकार कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के रोडमैप पर काम कर रही है. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि कुछ स्थानों पर इनके लिए आवासीय परिसर बनकर तैयार हो गए हैं तथा कुछ जगहों पर काम चल रहा है. एक वर्ष के भीतर कश्मीरी पंडित फिर घाटी में नजर आएंगे. सिन्हा ने दावा किया कि स्थानीय मुस्लिम समुदाय भी चाहता है कि कश्मीरी पंडितों की वापसी हो. उनका कहना है कि आतंकियों की कारस्तानी की वजह से कश्मीरी पंडित बाहर रहने को मजबूर हुए. उपराज्यपाल ने कहा कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर बैंक को निर्देश दिया है कि जो कश्मीरी पंडित उद्यमी बनना चाहते हैं, उन्हें त्वरित आधार पर ऋण उपलब्ध कराया जाए. विदेश में बसे हिंदू भी घाटी में वापस लौटकर निवेश करना चाहते हैं. ऐसे दावे और घोषणाओं के बावजूद देखना होगा कि कश्मीरी पंडित कितने आश्वस्त हैं? क्या वे घाटी में अपने लिए सुरक्षित भविष्य देखते हैं? वे वहां वापस जाकर बसेंगे या जम्मू में ही रहेंगे?