महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक में भारी तबाही अतिवृष्टि व बाढ़ का भीषण प्रकोप

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महाराष्ट्र सहित देश के कई राज्य भारी वर्षा और बाढ़ के संकट से जूझ रहे हैं. अक्टूबर माह के मध्य में इतनी बारिश होना हैरत में डालने वाली बात है. सभी महसूस कर रहे हैं कि ऋतु चक्र बदल गया है. इस वर्ष कुछ ज्यादा ही पानी बरसा. पश्चिम महाराष्ट्र के पुणे, बारामती, उस्मानाबाद, सोलापुर, पंढरपुर में बाढ़ से तबाही हुई है तथा लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. राज्य में अतिवृष्टि से 17 लोगों की मौत हुई. सांगली-सोलापुर में खरीफ फसलों की भारी बरबादी हुई है. कोंकण में धान की फसल चौपट हो गई. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने गंभीर बाढ़ स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य के मुख्य सचिव के साथ आपदा प्रबंधन व गृह विभाग के अधिकारियों की बैठक की तथा पीड़ितों की मदद के लिए हरसंभव कदम उठाने का निर्देश दिया. किसानों तथा आम लोगों को हुई क्षति का पंचनामा करने को कहा गया. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तथा उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने अतिवृष्टि और बाढ़ का जायजा लिया.

एनडीआएफ की टुकड़ियां तैनात करने के अलावा मदद के लिए वायुसेना व नौसेना के साथ आर्मी को भी हाई अलर्ट पर रहने के निर्देश दिए गए हैं. पंढरपुर में 6 तथा पुणे में 4 लोगों की मौत हुई है. पुणे में गटर-नाले पाटकर ऊपर से निर्माण कार्य किया गया. वहां की मुला-मुठा नदियों के किनारे भी अतिक्रमण किया गया जिसका नतीजा सामने आया. इसी तरह हैदराबाद में जलप्रलय जैसी स्थिति देखी गई. 24 घंटे में इतनी बारिश हुई मानो बादल फट गया हो. सारा शहर जलमग्न हो गया. ऐसे समय पर एनडीआरएफ, सेना व पुलिस ने लोगों को बचाने में कड़ी मेहनत व सूझबूझ का परिचय दिया. 1908 में आई भीषण बाढ़ के बाद हैदराबाद में आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया था तथा जलसंग्रह के लिए हिमायत सागर और उस्मान सागर जैसे बड़े जलाशय बनाए गए थे. तब शहर में अनेक जलाशय व झीलें थीं, परंतु हैदराबाद में आबादी बढ़ने के साथ जमीन की जरूरत देखते हुए आधे से ज्यादा जलाशय पाट दिए गए. अतिक्रमण भी खूब बढ़ा. 112 वर्ष पुराना ड्रेनेज सिस्टम आज के हालात से निपटने में किसी काम का नहीं है. पानी की निकासी नहीं होने से हैदराबाद में सड़कें व बस्तियां डूब गईं और कमर से लेकर गर्दन तक जलस्तर बढ़ गया. कितनी ही कारें, लोग और मवेशी पानी में तिनके की तरह बह गए. प्रकृति तो कुपित है ही, साथ ही प्रशासनिक लापरवाही भी कम नहीं है. चाहे मुंबई हो या हैदराबाद, पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं होने से भारी बारिश में बेहद बुरा हाल हो जाता है.

मौसम चक्र में बदलाव

ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघलने की गति तीव्र हो गई है, इससे मौसम गड़बड़ा गया है. समुद्री जलस्तर में वृद्धि के साथ अतिवृष्टि तथा बाढ़ का खतरा बढ़ता ही जा रहा है. राजस्थान के उन रेतीले इलाकों में जहां पानी दुर्लभ है, इस बार काफी वर्षा हुई. सितंबर अंत तक बारिश खत्म हो जानी चाहिए लेकिन नवरात्रि आने तक वर्षा होना आश्चर्यजनक है. हमारे शहरों का हाल बेहाल होता जा रहा है. किसी वर्ष चेन्नई में तो कभी बंगलुरू में, फिर दिल्ली व मुंबई में बारिश ने कहर मचाया. हाल ही में जारी यूएन रिपोर्ट में कहा गया है कि मौसम परिवर्तन से होने वाली आपदाओं में चीन और अमेरिका के बाद भारत का ही नंबर आता है. सन 2000 से यही सिलसिला चला आ रहा है. मौसम की इस मार का नतीजा प्राणहानि और आर्थिक नुकसान के रूप में भुगतना पड़ता है. बिहार में हर वर्ष बाढ़ का प्रकोप देखा जाता है जिससे भारी बरबादी होती है और पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है.

एहतियाती उपाय जरूरी

राहत और बचाव कार्य अपनी जगह हैं लेकिन ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली बरबादी पर काफी हद तक अंकुश लगे. शहरों में पानी निकासी की प्रणाली या ड्रेनेज सिस्टम को सुधारना होगा. प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाना होगा जो नाली में अड़कर पानी के प्रवाह को रोक देता है. समुद्र के किनारे के शहर डूबने न पाएं, इसलिए अतिक्रमण पर रोक लगाते हुए समुद्री तट पर मैंग्रोव कायम रखने चाहिए जो पानी को रोक देते हैं. अभियांत्रिकी के जरिए बाढ़ नियंत्रण के उपाय किए जा सकते हैं. बाढ़ और प्राकृतिक आपदा से सारे विकास पर पानी फिर जाता है. इसलिए पहले सजगता बरतने के अलावा एहतियाती कदम उठाए जाने चाहिए. सरकार व प्रशासन इस संबंध में दूरदर्शिता दिखाए.