पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज (Nishanebaaz), हम समझते थे कि वरुण गांधी (Varun Gandhi) परिपक्व और समझदार हैं और अपने चचेरे भाई राहुल गांधी की तुलना में कहीं अधिक संतुलित हैं. हालांकि वरुण अनावश्यक बयानबाजी नहीं करते लेकिन न जाने क्यों उनका पारा अचानक चढ़ गया. उनके पीलीभीत चुनाव क्षेत्र के एक युवक ने रात 9.30 बजे फोन करके किसी मामले में उनकी मदद मांगी तो वरुण झल्ला गए. उन्होंने उस युवक को डांट पिलाते हुए कहा कि सुबह बात करना, मैं रात में बात नहीं करता. मैं तुम्हारे बाप का नौकर नहीं हूं! निशानेबाज, बताइए कि क्या किसी सांसद को अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों से ऐसे अपमानजनक ढंग से बात करनी चाहिए? अपने एरिया का एक-एक वोट कीमती होता है.
वरुण ऐसी नाराजगी दिखाएंगे तो वे अलोकप्रिय हो जाएंगे और उनके वोट छिटक जाएंगे.’’ हमने कहा, ‘‘वरुण ने बिल्कुल ठीक किया. आखिर वरुण भी गांधी परिवार से ही हैं. अपनी दादी इंदिरा जैसी गर्म मिजाजी उन्होंने दिखा ही दी. जब लोग उल्टे-सीधे काम के लिए सांसद से मदद मांगने लगें तो उन्हें फटकारना भी तो जरूरी हो जाता है. उस युवक को पुलिस ने प्रॉविजन स्टोर में शराब बेचते पकड़ा था. उसकी दुकान से 20 बोतल देशी शराब जब्त की गई थी. हो सकता है उसने गिरफ्तारी से बचने और पुलिस को धौंस दिखाने के लिए सीधे बीजेपी सांसद वरुण गांधी को फोन लगाया हो. वरुण गांधी ऐसे गलत आदमी का साथ क्यों देते? अच्छा किया जो उन्होंने उसे डांट दिया.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘ऐसे में टालते हुए इतना कह देना चाहिए कि अच्छा ठीक है, मैं देखता हूं मामला क्या है! यह कहने की क्या जरूरत थी कि मैं तुम्हारे बाप का नौकर नहीं हूं.’’ हमने कहा, ‘‘टाइम-बेटाइम कोई फोन करेगा तो गुस्सा आएगा ही! सांसद सचमुच जनसेवक या लोकसेवक की भूमिका निभा सकता है, अपने क्षेत्र के विकास तथा सार्वजनिक किस्म की शिकायतों के समाधान के लिए प्रयास कर सकता है लेकिन वह किसी अवैध रूप से शराब बेचने वाले की मदद क्यों करे? वरुण गांधी ऐसे लोगों को मुंह नहीं लगाना चाहते, इसलिए उन्होंने कह दिया कि मैं तुम्हारे बाप का नौकर नहीं हूं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, साढ़े 9 बजे कोई बहुत ज्यादा रात नहीं होती. यदि रात 12 बजे फोन आता तो वरुण को नाराज होने का हक था.’’ हमने कहा, ‘‘बड़े लोगों को फोन करने से पहले मैसेज देकर पूछ लेना चाहिए कि आर यू फ्री टु टॉक? उनके हामी भरने पर फिर फोन लगाकर संक्षेप में बात करनी चाहिए. सांसद को गाजर-मूली नहीं समझना चाहिए. वह चुनाव क्षेत्र के लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करता है.’’