अमेरिका की भारत को दो टूक, पहले दवा अपने नागरिकों के लिए, फिर निर्यात

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    भारत सरकार ने अपनी वैक्सीन (Covid-19 Vaccine) जरूरतों को सर्वाधिक प्राथमिकता देने की बजाय वाहवाही लूटने के लिए विश्व के 80 देशों को या तो वैक्सीन का निर्यात किया या फिर दरियादिली से उपहार के रूप में दिया. ऐसा करते समय बिल्कुल भी नहीं सोचा कि अपने 135 करोड़ की आबादी के देश में वैक्सीन की किल्लत पड़ जाएगी तो क्या करेंगे? यह ‘घर फूंक तमाशा देख’ की मिसाल थी. जब भारत को कोविड टीका बनाने के लिए कच्चे माल की जरूरत पड़ी तो अमेरिका ने अंगूठा दिखा दिया.

    सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India) के सीईओ अदर पूनावाला (Adar Poonawalla) ने अमेरिका से वैक्सीन उत्पादन के लिए कच्चे माल के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटाने की मांग की तो उनके इस अनुरोध पर अमेरिका ने गोलमोल जवाब दिया. एक पत्रकार ने व्हाइट हाउस कोविड-19 रिस्पांस टीम से इस बारे में सवाल किया कि भारत किस कच्चे माल की बात कर रहा है और क्या सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की चिंताओं को दूर करने के लिए आपके पास कोई योजना है तो नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिसीजेस के निदेशक डा. एंथनी फाउची और व्हाइट हाउस की कोविड रिस्पांस टीम के वरिष्ठ सलाहकार डा. एंडी स्लाविट ने कहा कि उनके पास इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं है.

    अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि हम भारत की फर्मास्युटिकल जरूरतों को समझते हैं पर हमारे पास उसका हल नहीं है. पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित टीके का उत्पादन कर रहा है. अमेरिकी सरकार ने माना कि घरेलू कंपनियों की ओर से पहले अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता दिए जाने के तहत ऐसा हुआ है. दवा सबसे पहले अमेरिकियों के लिए है, फिर उसका निर्यात होगा.