PM केयर्स फंड सरकार का नहीं तो फिर किसका?

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    आपदाओं में राहत पहुंचाने के उद्देश्य के लिए पहले से प्रधानमंत्री राहत कोष मौजूद रहते हुए भी मार्च 2020 में पीएम केयर्स फंड शुरू किया गया. तब जनता के बीच यही सवाल उठा कि इस नए फंड की जरूरत क्या है? जिन्हें आपदा पीड़ितों के लिए मदद या सहयोग करना है, वे प्रधानमंत्री राहत कोष में दान देते रहे हैं और इसमें उन्हें टैक्स बेनेफिट भी मिला है. फिर पीएम केयर्स फंड का औचित्य क्या है? सामान्य लोगों के अलावा बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने पीएम केयर्स में मोटी रकम दी. 

    माना जाता है कि इसमें आर्थिक योगदान देनेवालों का उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी और सत्तारूढ़ बीजेपी को खुश करना रहा होगा. खेद है कि पारदर्शिता का दावा करनेवाली सरकार पीएम केयर्स फंड के बारे में जानकारी देने के लिए पारदर्शी नहीं है. यह जानने का कोई उपाय नहीं है कि फंड में कितनी रकम आई और किस प्रकार कहां-कहां खर्च की गई. इसका ऑडिट हो रहा है या नहीं? कहीं इसमें जमा रकम ब्लैक मनी तो नहीं है? कई लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई आवेदन देकर इस बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की लेकिन पूरी तस्वीर सामने नहीं आ पाई.

    पीएम केयर्स फंड को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में 2 अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं. एक याचिका में फंड को आरटीआई कानून के तहत पब्लिक अथॉरिटी घोषित करने की मांग की गई. दूसरी याचिका में इसे सरकारी या स्टेट फंड घोषित करने की अपील की गई. केंद्र सरकार ने इस बारे में कोर्ट में जानकारी दी कि पीएम केयर्स फंड सरकार का नहीं है. पीएमओ के अधिकारी ने अदालत को बताया कि यह ट्रस्ट चाहे संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘स्टेट’ हो या न हो और आरटीआई कानून के तहत ‘पब्लिक अथॉरिटी’ हो या न हो, हमें किसी थर्ड पार्टी की जानकारी देने की अनुमति नहीं है. 

    पीएम केयर्स फंड को थर्ड पार्टी कहने से मामला और पेचीदा हो गया. सरकार ने इससे अपना पल्ला झाड़ लिया. याचिका दायर करनेवाले वकील सम्यक गंगवाल पहले ही अदालत को बता चुके हैं कि पीएम केयर्स फंड की वेबसाइट पर मौजूद कागजात में बताया गया है कि ट्रस्ट की स्थापना न तो संविधान के तहत की गई और न ही संसद द्वारा पारित किए गए किसी कानून के तहत. इसके बावजूद सरकार के सबसे उच्च अधिकारियों का नाम इससे जुड़ा है. इससे फंड को लेकर रहस्य गहरा गया है.