कांग्रेस अध्यक्ष पद पर फिर बुजुर्ग Vs युवा, अस्वस्थ सोनिया क्यों नहीं निर्णय लेतीं

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देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस विरोधाभासों से जूझ रही है. आश्चर्य का विषय है कि वह अपनी दिशा तय नहीं कर पा रही है, जिससे कार्यकर्ताओं में संभ्रम बना हुआ है. अपनी अस्वस्थता के बावजूद सोनिया गांधी ने कांग्रेस को नेतृत्व दिया लेकिन अंतरिम अध्यक्ष के रूप में उनका 1 वर्ष का कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो गया. इस दौरान उम्मीद थी कि पार्टी अपने नए अध्यक्ष का चुनाव करने की दिशा में तत्पर हो जाएगी परंतु वैसा कुछ दिखाई नहीं दिया. ऐसा कहा जा रहा है कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक जल्द बुलाकर सोनिया गांधी के कार्यकाल को बढ़ा दिया जाएगा. आखिर यह कैसी बात हुई? सोनिया ने अपनी अस्वस्थता की वजह से राहुल गांधी को अध्यक्ष बनवाया था. जब मनचाहे ढंग से कामकाज की आजादी न मिलने तथा पार्टी में बुजुर्गों का वर्चस्व बना रहने से राहुल का मन उचट गया और उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया तो मजबूरन सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष का दायित्व संभालना पड़ा था. इस एक वर्ष के दौरान पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव क्यों नहीं कराया गया? पार्टी यथास्थिति में कब तक रहेगी?

कांग्रेस की मजबूरी यह है कि वह गांधी परिवार के बाहर अपना भविष्य नहीं देखती. कांग्रेसजनों को लगता है कि यही परिवार कांग्रेस को जोड़े हुए है और इसके बगैर पार्टी का गुजारा नहीं है. 1885 में गठित 135 वर्ष पुरानी पार्टी की यह सोच कितनी विचित्र है! गांधी-नेहरू परिवार के अलावा भी कितने ही नेताओं ने पार्टी का नेतृत्व किया. आजादी के बाद भी यूएन ढेबर, एन संजीव रेड्डी, डी. संजीवैया, के. ब्रम्हानंद रेड्डी, एस निजलिंगप्पा, देवकांत बरुआ, शंकरदयाल शर्मा, सीताराम केसरी जैसे कांग्रेस अध्यक्ष हुए. कोई जरूरी नहीं है कि गांधी परिवार का ही कोई व्यक्ति पार्टी का अध्यक्ष पद संभाले. सोनिया अस्वस्थता के बावजूद यह जिम्मेदारी वहन कर रही हैं और राहुल गांधी इस पद को संभालने के प्रति उदासीन हैं तो ऐसी स्थिति में कोई न कोई विकल्प तो खोजा ही जाना चाहिए. पार्टी हित और देशहित दोनों के लिहाज से यह जरूरी है. मौका मिले तो नया और मजबूत नेतृत्व खुद ही पनपता है.

बूढ़े नेताओं का बोलबाला

कांग्रेस में अहमद पटेल, कपिल सिब्बल, मोतीलाल वोरा, अंबिका सोनी, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे पुराने नेता छाए हुए हैं जो इंदिरा व राजीव गांधी युग से चले आ रहे हैं. सोनिया गांधी मानकर चलती हैं कि इन नेताओं के पास अनुभव व परिपक्वता है. नए नेताओं पर संभवत: उनका भरोसा नहीं है. इसके विपरीत राहुल गांधी पार्टी में पीढ़ीगत परिवर्तन के पक्षधर रहे. उन्होंने अध्यक्ष पद पर रहते हुए पार्टी संगठन का चुनाव कराने की कोशिश की लेकिन उसमें भी बुजुर्ग नेताओं के बेटे या परिजन चुनकर आते दिखे. जमीन से जुड़े मेहनती नेता-कार्यकर्ताओं को अवसर ही नहीं मिल पाया. राहुल समझ गए कि ऐसी परिस्थिति में वे बदलाव नहीं ला सकते. राहुल गांधी के साथियों को भी कांग्रेस ने तरजीह नहीं दी. यही वजह थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में जाने को मजबूर हो गए और सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ बगावत कर दी. सिंधिया के पार्टी छोड़ने का नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के हाथ से मध्यप्रदेश निकल गया. पायलट की बगावत की वजह से भी गहलोत सरकार डांवाडोल हो रही है. पार्टी की यह दशा देखकर भी बुजुर्ग नेताओं को होश नहीं आ रहा है कि वे अपना वर्चस्व छोड़कर युवाओं को मौका दें. जो नेता उम्र अधिक होने से प्रचार दौरा नहीं कर पाते, ढेर सारी सभाओं को संबोधित नहीं कर पाते, संपर्क को बढ़ा नहीं पाते, उनसे पार्टी कौन सी उम्मीद रखती है?

उभरने लगे नाराजी के स्वर

राहुल गांधी के पार्टी की कमान न संभालने से नेताओं में घमासान मचा हुआ है. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि पार्टी के भीतर बदलाव और पूर्णकालिक अध्यक्ष की आवश्यकता है. अंतरिम अध्यक्ष से काम नहीं चल सकता. या तो राहुल गांधी पार्टी का नेतृत्व करें अन्यथा सोनिया गांधी को पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया जाए. तीसरा रास्ता यह है कि अध्यक्ष पद और कांग्रेस कार्यसमिति का चुनाव कराया जाए क्योंकि संगठन के शीर्ष में अनिश्चितता नहीं रहनी चाहिए. शशि थरूर ने मांग की कि कांग्रेस को शीघ्र ही नए अध्यक्ष की तलाश करनी होगी. हम सोनिया गांधी से अनंत समय तक बोझ उठाए रखने की उम्मीद कैसे करें? राहुल में पार्टी का नेतृत्व करने की क्षमता है लेकिन यदि वे ऐसा नहीं करना चाहते तो पार्टी को नए अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए आगे बढ़ना चाहिए. पूर्णकालिक अध्यक्ष खोजने की प्रक्रिया तेज करने की जरूरत है. पार्टी अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की वापसी और फिर से कमान संभालना सर्वश्रेष्ठ परिदृश्य होगा. यदि वे नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं तो उन्हें अपना इस्तीफा वापस लेना होगा. वह दिसंबर 2022 तक सेवा देने के लिए चुने गए थे. उन्हें फिर से बागडोर थामनी होगी.