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‘टैनर व्हाइटहाउस 3 (टीडब्ल्यूथ्री)' विधि के उपयोग को लेकर विशेषज्ञ बंटे हुए हैं।

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नयी दिल्ली. अखिल भारतीय टेनिस महासंघ (एआईटीए) ने खेल में उम्र की धोखाधड़ी से निपटने के लिए ‘टीडब्ल्यूथ्री’ परीक्षण शुरू करने की घोषणा की है लेकिन विशेषज्ञों ने इस लोकप्रिय विधि की सीमित सीमाओं का जिक्र करते हुए ‘एफईएलएस तरीका’ या ‘एपिजेनेटिक क्लॉक’ जैसी अधिक विश्वसनीय तकनीकों को अपनाने का सुझाव दिया है। ‘टैनर व्हाइटहाउस 3 (टीडब्ल्यूथ्री)’ विधि के उपयोग को लेकर विशेषज्ञ बंटे हुए हैं।

अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) भी मानती है कि यह काफी हद तक अनिर्णायक है। इसका हालांकि व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। देश में प्रमुख खेल संघों जिनमें भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई), अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) और भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) खिलाड़ियों का टीडब्ल्यूथ्री परीक्षण करवाते हैं। हड्डी की परिपक्वता का आकलन टैनर-व्हाइटहाउस (टीडब्ल्यू) या एफईएलएस विधि से किया जाता है। रक्त के नमूने, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई गैर-विकिरण तरीके हैं, लेकिन आईओसी के अनुसार वे भी पर्याप्त नहीं हैं। टीडब्ल्यूथ्री विधि में व्यक्ति की हड्डी की परिपक्वता की जांच करने के लिए बाएं हाथ और कलाई का एक्स-रे किया जाता है जिससे उनकी हड्डी की उम्र निर्धारित की जा सके।

कलाई के स्कैन में उम्र का अनुमान उन 20 हड्डियों को देखकर लगाया जाता है, जो शुरू में अलग-अलग होती है लेकिन उम्र बढने के साथ में मिल जाती हैं। रेडियोग्राफ के लिए बाएं हाथ और कलाई के उपयोग करने का एक कारण यह है कि ज्यादातर लोग दाएं हाथ से सक्रिय होते हैं। ऐसे में बाएं हाथ की तुलना में दाहिने हाथ के चोटिल होने की अधिक संभावना होती है। डॉ सुनीता कल्याणपुर और उनके रेडियोलॉजिस्ट पति अर्जुन कल्याणपुर ने एआईएफएफ के लिए लगभग 3000 फुटबॉलरों पर टीडब्ल्यूथ्री परीक्षण किए हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि यह 100 प्रतिशत सटीक नहीं है लेकिन यह वास्तविक उम्र का निर्धारण करने के बहुत करीब है।

अर्जुन ने कहा, ‘‘ पिछले कुछ वर्षों में तकनीक में काफी बदलाव आया है। हम डेनमार्क के एक सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं। प्रक्रिया बहुत अधिक परिष्कृत है। इसमें एक मिनट से कम समय लगता है और बच्चों को कोई जोखिम नहीं होता है। पहले वास्तविक उम्र के साथ अंतराल चार साल तक था लेकिन अब मुश्किल से 6 से 9 महीने है।” विशेषज्ञों का हालांकि मानना है कि किसी भी तकनीक का इस्तेमाल करने पर जांच कर निकाली गयी उम्र और जैविक उम्र से दो-तीन साल का अंतर हो सकता है। मैनचेस्टर यूनाइटेड फुटबॉल क्लब के फिजियो अमांडा जॉनसन ने कहा, ‘‘जिस बच्चे का जल्दी विकास होता है वह 13-14 साल की उम्र में 16 साल का लग सकता है। शोध से पता चला है कि टीम के खेल में जो बच्चे बड़े और मजबूत होते हैं, उनके चुने जाने की संभावना अधिक होती है। ऐसे बच्चे परीक्षण के दौरान जैविक रूप से अधिक परिपक्व होते हैं।”

अमांडा ने यह भी बताया कि एमयूएफसी ने हड्डी और जैविक आयु के अंतर की जांच के लिए एक अध्ययन किया था। उन्होंने कहा, ‘‘ इस अध्ययन में पाया गया कि लगभग 30% खिलाड़ियों का शुरूआती विकास या तो देर से होता है या जल्दी होता है। ऐसे में आयु-निर्धारित समूहों में प्रशिक्षण से गुजरने वाले कई खिलाड़ी निर्धारित प्रशिक्षण आहार से बेहतर लाभ नहीं उठा सकते हैं।”

आईओसी ने जून 2010 में इस मुद्दे पर कहा था, ‘‘ अलग-अलग बच्चों के विकास की गति अलग-अलग होती है। एक्स-रे स्कैनिंग द्वारा हड्डियों की आयु का आकलन सीमित है और इससे जैविक आयु का सटीक निर्धारण नहीं होता है। लखनऊ के खेल दवा विशेषज्ञ डा सरनजीत सिंह ने कहा कि इसके लिए ‘एपिजेनेटिक वॉच’ तरीका ज्यादा सटीक है।

उन्होंने कहा, ‘‘ एपिजेनेटिक वॉच विधि में हम मिथाइल समूहों के आणविक मार्कर को देखते हैं जिन्हें डीएनए से जोड़ा या हटाया जा सकता है। डीएनए मार्कर के अध्ययन को एपिजेनेटिक्स कहा जाता है और वर्तमान में अध्ययन का एक बहुत ही नया और सक्रिय क्षेत्र है।” (एजेंसी)