Sreejesh becomes co-chairman of FIH Athlete Committee, Hockey India congratulates
श्रीजेश (File Photo)

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नई दिल्ली. कोरोना वायरस महामारी के कारण लगभग तीन महीने बाद घर लौटे भारतीय हॉकी टीम के गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने कहा है कि लॉकडाउन के दौरान काफी ‘प्रेरणादायी’ साहित्य पढ़कर वह मानसिक मजबूती बरकरार रखने में सफल रहे। श्रीजेश के पिता हृदय रोगी हैं और केरल में उनके दो बच्चे भी हैं और ऐसे में राष्ट्रीय टीम के इस गोलकीपर ने स्वीकार किया कि लॉकडाउन के दौरान नकारात्मक विचारों को दूर रखना मुश्किल था लेकिन वह अमेरिका की ट्रायथलीट जोआना जीगर की ‘द चैंपियन्स माइंडसेट- एन एथलीट्स गाइड टू मेंटल टफनेस’ किताब पढ़कर अपनी ऊर्जा का सही इस्तेमाल कर पाए। श्रीजेश ने पीटीआई से कहा, ‘‘यह काफी मुश्किल समय था क्योंकि हमारी जीवनशैली पूरी तरह से बदल गई थी। मुख्य चीज अपने विचारों में संतुलन बनाना था।

मेरे पिता हृदय रोगी हैं और मेरे दो बच्चे हैं- छह साल की बेटी और तीन साल का बेटा। इसलिए मैं उनके स्वास्थ्य को लेकर अधिक चिंतित था क्योंकि दोनों अधिक जोखिम वाले आयु वर्ग में हैं।” उन्होंने कहा, ‘‘एक तरफ तो मुझे घर की याद आ रही थी और दूसरी तरफ मैं घर जाकर उन्हें खतरे में नहीं डालना चाहता था क्योंकि यात्रा के दौरान वायरस से संक्रमित होने का खतरा था।” श्रीजेश ने कहा, ‘‘इसलिए शांति के लिए मैंने किताबों का सहारा दिया। लॉकडाउन के दौरान मैंने काफी किताबें पढ़ी, फिक्शन, नॉन फिक्शन से लेकर प्रेरणादायी किताबें। इसने मुझे अलग तरह से सोचने में मदद की। चैंपियन्स माइंडसेट ऐसी किताब है जो मैंने दोबारा पढ़ी।” भारत की पुरुष और महिला हॉकी टीमें 25 मार्च से भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) के बेंगलुरू के दक्षिण केंद्र में हैं जब सरकार ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी।

पिछले शुक्रवार को हालांकि हॉकी खिलाड़ियों को एक महीने के ब्रेक पर केंद्र से जाने की स्वीकृति मिल गई। श्रीजेश 14 दिन के लिए अब अपने घर में ही पृथकवास में हैं और इसके बाद ही अपने बच्चों के साथ खेल पाएंगे और घर से बाहर निकल पाएंगे। भारत के नंबर के एक गोलकीपर श्रीजेश ने कहा कि बेंगलुरू का साइ केंद्र सुरक्षित स्थान था लेकिन उन्हें एक महीने के ब्रेक की जरूरत थी क्योंकि इतने लंबे समय तक घर से दूर रहने के कारण धीरे-धीरे खिलाड़ी मानसिक रूप से कमजोर महसूस करने लगे थे। उन्होंने कहा, ‘‘हम सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित स्थान पर थे। हम लॉकडाउन में थे लेकिन फिर भी छोटे समूहों में परिसर के अंदर घूम सकते थे। लेकिन कभी हमने इतने लंबे शिविर में हिस्सा नहीं लिया था और इसका खिलाड़ियों पर असर हो रहा था।

सभी को परिवार की कमी खल रही थी।” श्रीजेश ने कहा, ‘‘एक समय हम इसका सामना नहीं कर पा रहे थे। रोजाना सुबह से रात से एक ही जैसा काम करना होता था और हम मानसिक रूप से कमजोर महसूस करने लगे थे।” तोक्यो में अपने तीसरे ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले श्रीजेश अपने करियर का अंत ओलंपिक पदक के साथ करने को लेकर उत्सुक हैं। उन्होंने कहा, ‘‘तोक्यो मेरा अंतिम ओलंपिक हो सकता है लेकिन मैं हमेशा छोटे लक्ष्य बनाने को प्राथमिकता देता हूं। बेशक ओलंपिक पदक मेरा लक्ष्य है। एक ओलंपिक खेलकर पदक जीतना तीन ओलंपिक खेलने और खाली हाथ लौटने से बेहतर है।”(एजेंसी)