जब बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए नतीजों से अधिक मायने रखता था ओलंपिक

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    नई दिल्ली. भारत के शुरुआती बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए ओलंपिक में खेलना सिर्फ नतीजों तक सीमित नहीं था बल्कि खेलों के महाकुंभ में हिस्सा लेना महान एथलीट कार्ल लुईस के साथ खाना खाने और दिग्गज टेनिस खिलाड़ी स्टेफी ग्राफ जैसी खिलाड़ियों के साथ चाय पीने का मौका भी था। लगभग तीन दशक बीत जाने के बावजूद भारत के पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी दीपांकर भट्टाचार्य 1992 में बार्सीलोना ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के बाद हुई सराहना को नहीं भूले हैं।

    बार्सीलोना ओलंपिक में पहली बार बैडमिंटन को ओलंपिक में शामिल किया गया था और दीपांकर देश के उन शुरुआती तीन खिलाड़ियों में शामिल थे जिन्होंने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। चार साल बाद 1996 ओलंपिक के लिए भी क्वालीफाई करने वाले दीपांकर ने पीटीआई से कहा, ‘‘ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना मेरे जीवन का सबसे बड़ा अनुभव था। एतिहासिक लम्हे का हिस्सा होना विशेष था।” उन्होंने कहा, ‘‘मैं असम का पहला ओलंपियन बना था और सरकार तथा लोगों ने इसकी सराहना की थी। इसे उचित मान्यता मिली थी और ओलंपिक के लिए रवानगी काफी अच्छी रही थी। मैं अब भी उन कुछ महीनों को याद करता हूं, वह शानदार अनुभव था।”

    दीपांकर ने विमल कुमार और मधुमिता बिष्ट के साथ भारत की ओलंपिक यात्रा की शुरुआत की थी और साइना नेहवाल तथा पीवी सिंधू ने पिछले दो ओलंपिक में पदक जीतकर इसे यात्रा को अच्छी तरह आगे बढ़ाया है। तीन बार के राष्ट्रीय चैंपियन दीपांकर ने कहा, ‘‘मैंने 1991 में देश में सभी टूर्नामेंट जीतने शुरू किए और अंत में मैं शीर्ष वरीय खिलाड़ी बन गया।” उन्होंने कहा, ‘‘1992 की शुरुआत में मैंने इंग्लैंड, स्वीडिश ओपन और फ्रेंच ओपन में हिस्सा लिया और अच्छा प्रदर्शन किया। मैंने विश्व रैंकिंग में जगह बनाई जिससे क्वालीफाई करने में मदद मिली। यह शानदार सफर था जहां मैंने छह से सात टूर्नामेंट खेले। उस समय मेरी विश्व रैंकिंग 38 थी।”

    ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली देश की पहली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बनी मधुमिता को उन दिनों बैडमिंटन खिलाड़ी का संघर्ष अच्छी तरह याद है। उन्होंने कहा, ‘‘अधिक टूर्नामेंटों में खेलने का मौका नहीं मिलता था और उस समय प्रायोजक भी नहीं थे। हम साल में सिर्फ दो अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेल पाते थे इसलिए मैंने प्रायोजकों का दरवाजा खटखटाया।” बाइस साल के करियर में 27 राष्ट्रीय खिताब जीतने वाली इस खिलाड़ी ने कहा, ‘‘उन दिनों क्वालीफाई करने के लिए शीर्ष 40 में जगह बनाने की जरूरत थी। मेरी रैंकिंग 60 थी लकिन मैं कोरिया में और एशियाई बैडमिंटन चैंपियनिशप के क्वार्टर फाइनल में पहुंची। मेरी रैंकिंग में सुधार हुआ और मैंने ओलंपिक में जगह बनाई। यह रोमांचक सफर था।”

    दीपांकर 1992 में क्वार्टर फाइनल में पहुंचे थे जहां वह तत्कालीन विश्व चैंपियन झाओ जियानहुआ से हार गए। मधुमिता ने बार्सीलोना ओलंपिक के पहले दौर में आइसलैंड की एल्सा नीलसन को 11-3, 11-0 से हराया लेकिन दूसरे दौर में ग्रेट ब्रिटेन की जोआन मुगेरिज के खिलाफ हार गई। विमल को भी पहले दौर में डेनमार्क के थॉमस स्टुाए लारिडसेन के खिलाफ शिकस्त झेलनी पड़ी। भारत को 2001 से 2006 तक कोचिंग देने वाले विमल ने कहा, ‘‘मैं उस समय 30 बरस के आसपास था और मेरा अंतरराष्ट्रीय करियर खत्म होने वाला था। मेरी रैंकिंग 28 या 29 थी और मैंने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। मैं इतना निराश था कि पहले दौर में हार के बाद एथलेटिक्स देखने चला गया।”

    उन्होंने कहा, ‘‘मैं एथलेटिक्स और टेनिस का बड़ा प्रशंसक था इसलिए मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ लम्हा तब आया मैं लिएंडर और रमेश कृष्णन के साथ 100 मीटर दौड़ और लंबी कूद देखने गया। लिनफोर्ड क्रिस्टी, कार्ल लुईस, माइक पावेल से मिलना और उन सभी एथलीटों के साथ भोजना करना विशेष था।” मधुमिता को अब भी कई बार की ग्रैंडस्लैम विजेता स्टेफी से मुलाकात याद है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे स्टेफी से मिलना याद है। हम शाम की चाय के लिए गए थे और वह वहां थी। हम एक ही मेज पर थे और वह इतनी अच्छी थी। उन्होंने मेरे साथ हमारी संस्कृति और खेलों पर बात की। मुझे वह दिन अच्छी तरह याद है।”

    उन्होंने कहा, ‘‘मैंने सलवार कमीज पहनी थी और टीका लगाया हुआ था इसलिए कई यूरोपीय खिलाड़ी हमारी पोशाक को लेकर काफी उत्सुक थे और हमारी संस्कृति के बारे में पूछते थे। मुझे याद है कि मैंने 100 मीटर दौड़ में लिनफोर्ड क्रिस्टी को भी देखा था। इतनी सारी यादें हैं। यह शानदार अनुभव था।” (एजेंसी)