भारत में आज भी इनके नाम पर खेली जाती है रणजी ट्रॉफी, जानें इंग्लैंड के लिए खेलने वाले भारतवंशी की कहानी

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    आज यानी 10 सितंबर को भारतीय क्रिकेट के पितामह कहे जाने वाले महान रणजीत सिंह जी (Ranjitsinhji Birthday) का जन्मदिन है। उनका जन्म आज ही के दिन 1872 को गुजरात के जामनगर में हुआ था। रणजीत सिंह जी का जन्म एक शाही परिवार में हुआ था। 

    उनके अन्य प्रसिद्ध नाम हैं- ‘नवानगर के जाम साहब’, ‘कुमार रणजीतसिंहजी’, ‘रणजी’ और ‘स्मिथ’। रणजीत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट (International Cricket) खेलने वाले पहले खिलाड़ी रहे। भले ही उनका जन्म भारत में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय डेब्यू इंग्लैंड (Ranjitsinhji played the debut match for England) के लिए किया था।

    इंग्लैंड के लिए खेला अपना डेब्यू मैच 

    रणजीत सिंह ने इंग्लैंड के लिए खेलते हुए अपना टेस्ट डेब्यू 1896 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ किया था। अपने डेब्यू मैच में उन्होंने दमदार बल्लेबाजी करते होते पहली पारी में 62 और दूसरी पारी में नाबाद 154 रन बनाए थे। अंतरराष्ट्रीय पर उन्होंने कुल 15 टेस्ट मैच खेले और 44.95 की औसत के साथ 989 रन बनाने में कामयाब हुए। 26 पारियों में उनके बल्ले से दो शतक और छह अर्धशतक निकले थे। 

    रणजी ट्रॉफी 

    रणजीत सिंह का नाम विश्व क्रिकेट में बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके नाम पर आज भी भारत में रणजी ट्रॉफी खेली जाती है। काउंटी क्रिकेट में रणजीत ससेक्स की टीम का हिस्सा रहे थे। उन्होंने लगातार 10 सीजन तक 1000 रन बनाने का कीर्तिमान स्थापित किया था। 

    इसके अलावा उनके नाम अगस्त 1896 में रणजी ने होव के मैदान पर एक ही दिन में दो शतक लगाने का रिकॉर्ड भी दर्ज है। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में इससे पहले किसी भी खिलाड़ी ने ऐसा कारनामा नहीं किया था। 

    डेब्यू मैच के लिए हुआ था विवाद 

    प्रथम श्रेणी क्रिकेट में रणजीत का काफी अच्छा रिकॉर्ड है। रणजीत ने 307 प्रथम श्रेणी मैच खेलते हुए करीब 56 के औसत से 24692 रन बनाए, जिसमें 72 शतक और 109 अर्धशतक शामिल हैं। रणजीत ने ससेक्स के लिए चार साल तक कप्तानी भी की। उस वक्त भारत में अंग्रेजों का शासन था और रणजीत का इंग्लैंड टीम में चयन हुआ था। 

    रणजीत के इंग्लैंड टीम में चयन को लेकर काफी विवाद भी हुआ था। रणजीत का जब 1896 में इंग्लैंड टीम में चयन हुआ तब लार्ड हारिस इस चयन के खिलाफ थे। उनका कहना था कि रणजीत का जन्म इंग्लैंड में नहीं बल्कि भारत में हुआ है, तो इंग्लैंड टीम में उनका चयन नहीं होनी चाहिए।

    नहीं बनना चाहते थे क्रिकेटर  

    बचपन में रणजीत की क्रिकेट के प्रति कोई ज्यादा रुचि नहीं थी, बल्कि वह एक टेनिस खिलाड़ी बनना चाहते थे। लेकिन, पढ़ाई करने के लिए जब वह इंग्लैंड गए तो क्रिकेट के प्रति उनका प्यार बढ़ता गया। उस वक्त इंग्लैंड में टेनिस से ज्यादा क्रिकेट खेला जा रहा था। 

    इंग्लैंड में क्रिकेट के प्रति लोगों का प्यार देखते हुए रणजीत ने खुद एक क्रिकेट खिलाड़ी बनना चाहा। उस वक्त इंग्लैंड में ससेक्स क्लब काफी नामी क्लब था। ग्रेजुएशन के बाद रणजीत ने ससेक्स के लिए क्रिकेट खेलना शुरू किया और अच्छा प्रदर्शन करने लगे।

    पहला और आखिरी मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 

    रणजीत ने अपने क्रिकेट करियर का पहला और आखिरी मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ और मैनचेस्टर के ओल्ड ट्राफ्फोर्ड मैदान पर खेला। आखिरी मैच में रणजीत कुछ खास नहीं कर पाए थे। इस मैच में रणजीत कुल मिलाकर सिर्फ छह रन बना पाए थे। 1904 में रणजीत भारत वापस आ गए। रणजीत का क्रिकेट के प्रति इतना प्यार था कि 48 साल के उम्र में वह प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना चाहते थे। 

    1907 में रणजीत नवानगर के महाराजा बने। एक अच्छे क्रिकेटर के तरह वह एक अच्छे एडमिनिस्ट्रेटर भी थे। 1934 में रणजीत  के नाम पर भारत ने रणजी ट्रॉफी शुरू हुई। रणजीत भारत के पहले क्रिकेट खिलाड़ी थे, जिन्हें अंतराष्ट्रीय मैचों में मौक़ा मिला था। रणजीत को भारतीय क्रिकेट का जन्मदाता माना जाता है।

    गंवा दी थी एक आंख 

    1915 में यॉर्कशायर में रणजी दुर्घटना के शिकार हो गए थे। जिसकी वजह से उनकी दाईं आंख की रोशनी चली गई थी। इस एक्सीडेंट ने उनका फर्स्ट क्लास करियर समाप्त कर दिया था। रणजीत सिंह को 1897 में ‘विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर’ का अवॉर्ड भी मिला था। बताते चलें कि पटियाला रियासत के महाराज भूपिंदर सिंह ने रणजीत सिंह के नाम पर ‘रणजी ट्रॉफी’ का आगाज किया था।