Chhattisgarh
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    केशकाल (छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ में केशकाल का सुदूर वन क्षेत्र में धूलभरे रास्तों पर चलते हुए अचानक झरने से गिरते पानी की आवाज आपको चौंका देगी और आप के सामने कुछ ऐसे प्राकृतिक नजारे होंगे जिनमें से अधिकतर कुछ समय पहले तक आम लोगों की पहुंच से दूर थे। पहाड़ों पर साल के पेड़ों से आच्छादित यह प्राचीन वन कभी नक्सली गतिविधियों को लेकर कुख्यात था और इस क्षेत्र के गांवों में रहने वाले आदिवासियों ने कभी कल्पना नहीं थी कि ये प्राकृतिक जलाशय पर्यटन के केंद्र बनेंगे और उनके लिए आजीविका के साधन।  

    छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 170 किलोमीटर दूर केशकाल बस्तर क्षेत्र के उन सात जिलों में एक कोंडागांव में पड़ता है जो वाम चरमपंथ से बुरी तरह प्रभावित हैं। स्थानीय ग्रामीण दीपक नेताम ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘बस्तर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। सामान्यत: लोग समीपवर्ती बस्तर जिले में स्थित शानदार जलप्रपात चित्रकोट जाते हैं जो भारत का नियाग्रा कहलाता है लेकिन केशकाल जैसे अन्य क्षेत्रों को पर्यटन के लिहाज से अबतक खंगाला नहीं गया है।”  

    इक्कीस वर्षीय नेताम ने कहा कि स्थानीय प्रशासन द्वारा पिछले साल स्थानीय आदिवासियों को साथ लेकर की गयी पहल से अब परिणाम सामने आने लगे हैं। नेताम एक ऐसे ही समिति का सदस्य है। वह केशकाल से 15 किलोमीटर दूर होनहेड गांव का रहने वाले हैं जहां कुलकासा जलप्रपात की आवाज खासी दूरी से सुनाई देती है। हल्के हरे रंग की टी-शर्ट में कई आदिवासी नजर आते हैं। ये सभी स्थानीय रूप से बनी पर्यटन समिति का हिस्सा हैं जिन्हें इस स्थल के प्रबंधन का जिम्मा सौंपा गया है। समिति को यह पोशाक प्रशासन ने उपलब्ध करायी है।   

    विज्ञान विषय लेकर स्नातक की पढ़ाई कर रहे नेताम ने कहा कि जलप्रपात पर काम करने से उसकी पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आती है। होनहेड के उप सरपंच आत्माराम सोरी ने कहा कि समिति का गठन पिछले साल सितंबर में किया गया था और इस साल पिछले तीन महीनों (सितंबर, अक्टूबर, नवंबर) में इसने आगंतुकों से प्रवेश शुल्क के रूप में 33,000 रुपये से अधिक एकत्र किए। उन्होंने बताया कि समिति वयस्कों से 10 रुपये और बच्चों के लिये पांच रुपये का शुल्क लेती है जिसका इस्तेमाल सड़क की मरम्मत व गाड़ियों की पार्किंग की जगह बनाने के लिये होता है। (एजेंसी)