Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द किया और मामले को दोबारा ट्रायल कोर्ट भेजा। File Photo

    Loading

    नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) अध्यादेश, 2021 को 2:1 के अपने निर्णय (Decision) से बहाल रखा, लेकिन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा शर्तों से जुड़े कुछ प्रावधानों को ‘असंवैधानिक’ (Unconstitutional) करार दिया।

    शीर्ष अदालत ने अध्यक्ष या सदस्यों की नियुक्ति के लिए 50 वर्ष न्यूनतम आयु और चार साल के कार्यकाल की व्यवस्था से जुड़े प्रावधानों को निरस्त कर दिया तथा कहा कि इस तरह की स्थितियां शक्तियों के पृथकीकरण, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, कानून के शासन और संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत हैं।

    बहुमत के फैसले में कहा गया कि कार्यकाल की सुरक्षा और सेवा स्थितियों को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मुख्य अवयवों के रूप में मान्यता दी गई है। न्यायालय ने कहा कि निर्णय करने में ‘‘निष्पक्षता, स्वतंत्रता और तार्किकता” न्यायपालिका की विशिष्टता हैं तथा यदि ‘‘निष्पक्षता” न्यायपालिका की आत्मा है तो ‘‘स्वतंत्रता” न्यायपालिका का जीवनरक्त है।

    शीर्ष अदालत ने अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां करने तथा लंबे समय से खाली पदों को भरने में केंद्र की ‘‘निष्क्रियता” पर चिंता भी जताई। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने 157 पन्नों के बहुमत के अपने फैसले में व्यवस्था दी कि अधिकरण के अध्यक्ष का कार्यकाल पांच साल का या उनके 70 साल का होने तक (जो भी पहले हो) होगा तथा अधिकरण के सदस्यों का कार्यकाल पांच साल या उनके 67 साल का होने तक (जो भी पहले हो) होगा।

    बहुमत के फैसले में न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने न्यायमूर्ति राव और न्यायमूर्ति भट के मत के विपरीत मत व्यक्त किया और कहा कि प्रावधान कानूनी एवं वैध हैं तथा ये विधायिका के विशिष्ट कार्याधिकार क्षेत्र में आते हैं। (एजेंसी)