
नई दिल्ली. आज यानी 14 मार्च को 1984 भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) में पीड़ितों के लिए मुआवजे की राशि बढ़ाने के लिए केंद्र की क्यूरेटिव याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पांच जजों का संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है।
अब से कुछ देर पहले 1984 भोपाल गैस त्रासदी में पीड़ितों के लिए मुआवजे की राशि बढ़ाने के लिए केंद्र की क्यूरेटिव याचिका को संविधान पीठ ने आज खारिज कर दिया है। इस बाबत आज कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, केंद्र को इस मामले में पहले आना चाहिए था न कि तीन दशक के बाद।
Supreme Court rejects Centre’s curative plea for enhanced compensation for the victims of the 1984 Bhopal Gas tragedy from US-based firm Union Carbide Corporation, now owned by Dow Chemicals. pic.twitter.com/bYaCN0VIBg
— ANI (@ANI) March 14, 2023
दरअसल बीते 12 जनवरी को पांच जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। वहीं यूनियन कार्बाइड के साथ अपने समझौते को फिर से खोलने के लिए केंद्र ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी। भोपाल गैस पीड़ितों को 7400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिलवाने के लिए केंद्र सरकार ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी।
आज जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में अपना फैसला अब सुना दिया है। दरअसल जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके महेश्वर की पीठ ने भी बीते 12 जनवरी को केंद्र की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
वहीं बीते 12 जनवरी को हुई सुनवाई में UCC की उत्तराधिकारी फर्मों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि भारत सरकार ने निपटान के वक्त कभी भी यह सुझाव नहीं दिया था कि मुआवजा अपर्याप्त था। वहीं केंद्र सरकार साल 1989 में समझौते के तहत अमेरिकी कंपनी से मिले 470 मिलियन अमरीकी डॉलर (715 करोड़ रुपए) के अलावा UCC की उत्तराधिकारी फर्मों से मुआवजे के रूप में 7 हजार 844 करोड़ रुपए चाहता है।
इसके अलावा केंद्र सरकार इस बात पर भी जोर देती रही है कि साल 1989 में बंदोबस्त के समय मानव जीवन और पर्यावरण को हुए वास्तविक नुकसान का ठीक से आकलन नहीं हुआ था।