Protest

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    अकोला. 33 माह से अधिशेष एवं पेंशन से वंचित श्रेणी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने अपनी मांगों को लेकर सोमवार से जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया है. यह आंदोलन राज्यव्यापी है और इसी तरह से पूरे राज्य में जिलाधिकारी कार्यालय के सामने अनशन किए जा रहे हैं. 

    विवादास्पद जाति प्रमाण पत्र सत्यापन समिति द्वारा अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के वास्तविक जाति प्रमाण पत्र को धोखाधड़ी और अवैध रूप से जब्त कर लिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू किया और सरकारी फैसले को 12,500 स्थायी कर्मचारियों को 11 माह के लिए अधिसंख्य पदों पर वर्गीकृत किया. पिछले 33 महीनों में लगभग एक हजार कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए हैं. उन्हें पेंशन नहीं दी गई है. मृतक कर्मचारियों के वारिसों को पारिवारिक पेंशन नहीं दी गई है. सरकार 20 सितंबर तक सकारात्मक निर्णय ले, अन्यथा 26 सितंबर से प्रभावित कर्मचारी अपने परिवार के साथ राज्य के सभी जिलाधिकारी कार्यालयों के सामने भूख हड़ताल पर बैठेंगे, यह इशारा दिया गया था. इसी के तहत अब अनशन शुरू कर दिया गया है. 

    राज्य में अनुसूचित जाति, जनजाति के जाति प्रमाण पत्र की जांच के बहाने जारी जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने के लिए राज्य सरकार के पास कानून पारित करने का कोई अधिकार नहीं होने के बावजूद राज्य में कई आदिवासी जनजातियों का जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया है. इसलिए विवादास्पद अनुसूचित जनजाति जाति प्रमाण पत्र निरीक्षण समिति के मामलों की जांच करें, अधिकांश सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए तुरंत पेंशन लागू की जाए, ग्रॅज्यूइटी और अन्य लाभ दिए जाने चाहिए आदि  कई मांगे अनशनकर्ताओं की ओर से की गयी है.

     इस अनशन में शामराव इंगले, अर्जुनराव बेंडे, रमेश थुकेकर, विजय शिंदे, विजय हेडाऊ, प्रदीपसिंह चंदेल, गणेश खराटे, माधव पाटकर शामिल हैं. इस अनशन को सुरेश पाटकर, सुरेश सोनकुसरे, सुरेश निमजे, मोहन ठाकुर, नितिन कोहाडकर, तुषार सिरसाट, पवन बुटे, प्रदीप कोलट्के, प्रदीप वाणे, अरुण धकीते, संगीता खोड़के, प्रतीक खोड़के, महेंद्र पवनीकर समर्थन है.