चुरणी. आदिवासी बहुल क्षेत्र मेलघाट में दायी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. गर्भवतियों व प्रसुताओं की देखभाल मे अत्याधिक महत्व है लेकिन गत गई माह से इन्हे दाई किट तक नहीं दी गई है. इतना ही नहीं तो यह दाईयां भत्ते से भी वंचित है. जिससे अब पुन घर में प्रसुतियों की संख्या बढ़ने लगी है.
दुर्गम गांव में सेवा
सरकार द्वारा मेलघाट से कुपोषण व बालमाता मृत्यु रोकने के लिए अनेकों योजनाएं चलाई जा रही है. जिसमें मतृत्व अनुदान योजना, जननी सुरक्षा योजना, माहेर घर योजना जैसी योजनाएं है. जारी वर्ष में अप्रैल से अगस्त माह तक 8 बाल माता मृत्यु रिकार्ड है. साथ ही घरों में प्रसुति की संख्या में बढोत्तरी हुई है. आदिवासी अनेक दुर्गम गांव में रहते है. इन गांव तक स्वास्थ सेवाएं पहुंच पाना आज भी लेवल दखावा है. ऐसे में दाईयां गर्भवति माताओं व प्रसुताओं के लिए राहत दे रही है. दाईयां गत कुछ समय से अस्पतालों में प्रसुतियों का आंकड़ा बढ़ाने में मददगार रही है.
80 रुपए भत्ता
आम तौर पर आदिवासी गांव में गर्भावस्था के दौरान भी महिलाओं को भारी काम करना पड़ता है. जिससे उनकी संतान कम वजन की व कुपोषित होने की संभावना होती है. ऐसे में दाईयां इन गर्भवतियों का ध्यान रखती है. प्रसुति के बाद 7 दिनों तक प्रसुता की देखभाल करती है. उनके योग्य आहार आदि पर ध्यान रखती है. नवसंजीनी योजना के तहत इन दाईयों को गत कई माह से दाई कीट नहीं दी गई है. साथ दाई भत्ते के तहत इन दाईयों को प्रति बैठक 80 रुपए व चाय पानी के लिए 20 रुपए दिए जाते है. यह मामूली सा मानधन भी कई माह से उन्हें नहीं मिला है. यहां तक की समय समय पर दिया जाने वाल प्रशिक्षण भी कई वर्षों से नहीं दिया गया है. जिससे गर्भवतियों व प्रसुताओं को मेलघाट में दाईयों की संख्या 504 है. यह दाईयां गर्भवतियों व प्रसुताओं तथा आंगणवाडियों व अस्पतालों में समन्वय रखती है. यही कारण है कि गांव वासी भी इन दाईयों पर विश्वास करते है.
कोरोना के कारण विलंब
दाईयों के प्रशिक्षण में विलंब की वजह कोरोना है. कोरोना काल में इस तरह का प्रशिक्षण देने को अनुमति नहीं है. उनके भत्ते के गत 1 वर्ष के बिल बकाया है. उन्हे वरिष्ठों तक भेजा गया है. जल्द ही यह भत्ता उन्हे दिया जाएगा.
डा. दिलीप पांडे, तहसील स्वास्थ अधिकारी