पितृपक्ष: पितरों को याद करने का पखवाड़ा, 20 से शुरू होगा श्राद्ध पक्ष

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    अमरावती. भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से याने सोमवार 20 सितंबर से पितृपक्ष प्रारंभ हो रहा है. 6 अक्टूबर तक चलने वाले इस पक्ष को पूर्वजों को स्मरण करने का पखवाड़ा माना जाता है. मान्यता है कि परलोक गए पूर्वजों को पितृपक्ष के दौरान पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर मिलता और वह पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते है.

    इन दिनों मिले अन्न और जल से पितरों को बल मिलता है और इसी से वह परलोक के अपने सफर को तय कर पाते है. इन्हीं की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों का कल्याण करते है. इस पक्ष को श्राध्दपक्ष भी कहते है. जिसमें तर्पण कर पितरों को याद किया जा रहा है. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है.

    आभार व्यक्त कर क्षमा याचना

    श्राध्द पक्ष के दौरान पिंड दान भी करते है. श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाते है. पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है. पितृ पक्ष के सबसे आखिरी दिन सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है, जो कि 6 अक्टूबर को है. इस दिन उन सभी मृत पूर्वजों का तर्पण करवाते है.

    इस दिन उनके प्रति आभार प्रकट कर उनसे अपनी गलतियों की माफी मांगी जाती है. इस दिन किसी भी मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जा सकता है. खासतौर से वह लोग, जो अपने मृत पूर्वजों की तिथि नहीं जानते, वह इस दिन तर्पण कराते है.

     शुभ कार्य, नई वस्तू वर्जित

    श्राध्द पक्ष में कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं किया जाता. हालांकि देवताओं की नित्य पूजा जारी रहती है. पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता. उसी प्रकार कई लोग नए वस्त्र, नया भवन, गहने या अन्य कीमती सामान नहीं खरीदने की मान्यता है.