विद्यार्थियों ने सीखे स्ट्राबेरी फार्म के गुर, जगदंबा महाविद्यालय की पहल

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    अचलपुर. यहां के जगदंबा महाविद्यालय के कृषि मार्केटिंग कोर्स के विद्यार्थियों ने चिखलदरा के मोथा में स्ट्राबेरी की खेती कैसे की जाती है. इसकी संपूर्ण जानकारी ली. इस शैक्षणिक निरीक्षण भेंट में विद्यार्थियों ने स्ट्राबेरी फार्म के गुर सीखे. 

    आदिवासी किसानों को मिला रोजगार 

    ठंडे स्थल पर स्ट्राबेरी की फसल ली जाती है. जिससे महाबलेश्वर में बड़े पैमाने पर यह फसल ली जाती है. इसी की तर्ज पर विदर्भ के नंदनवन चिखलदरा में भी स्ट्राबेरी की खेती की जाती है. जिलाधिकारी व कृषि संशोधन विभाग की पहल पर पिछले 4 वर्षों से चिखलदरा में स्ट्राबेरी की फसल ली जाती है. आदिवासी किसानों को अनुदान दिया जाता है.

    चिखलदरा में जिनके खेतों में सिंचाई की सुविधा है, उन्हें स्ट्राबेरी की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. आलाडोह में नारायण खडके व मोथा में साधुराम ने स्ट्राबेरी खेती की शुरुआत की. जिसके बाद अनेक आदिवासी किसान स्ट्राबेरी की फसल ले रहे है. 

    पर्यटकों में बड़ी डिमांड 

    किसान साधुराम ने विद्यार्थियों को बताया कि महाबलेश्वर से स्ट्राबेरी के पौधे 12 रुपए नग के हिसाब से लाये जाते है. जिसे चिखलदरा में रोपा जाता है. 1 एकड़ में कुल 1 लाख रुपए लागत आती है. डेढ से पौने दो लाख रुपए की आय किसानों को होती हैं. 200 ग्राम का डिब्बा 40 से 60 रुपए तक बिका है. पर्यटकों की ओर से स्ट्राबेरी को अच्छी डिमांड हैं. परतवाड़ा व अमरवाती के व्यापारी स्ट्राबेरी लेकर जा रहे है. जिससे मार्केटिंग सहज संभव हो रहा है. 

    6 माह फसल  

    स्ट्राबेरी उत्पादक किसान ने विद्यार्थियों को बताया कि 6 माह यह फसल ली जाती है. शीतकाल में स्ट्राबेरी की फसल लहलहाती है. मार्च महीने तक स्ट्राबेरी के फल आते है. तापमान बढ़ने पर स्ट्राबेरी की बेल सूखने लगती है. किटाणू का प्रादुर्भाव कापी कम होता है. किटनाशक छिड़काव किया जाता है. आदिवासी किसानों के लिए स्ट्राबेरी नगद फसल के रूप में उभरी है. विद्यार्थियों ने सभी तरह की बारिकियां जान लीं. 

    विद्यार्थियों मिली दिशा 

    जगदंबा महाविद्यालय में पिछले 13 वर्षों से एग्रीकल्चरल मार्केटिंग कोर्स शुरू किया गया है.  सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, एडवांस डिप्लोमा ऐसा पाठ्यसक्रम महाविद्यालयीन शिक्षा ले रहे विद्यार्थी पूर्ण कर सकते है. कला,वाणिज्य व विज्ञान शाखा में इस पाठ्यक्रम में प्रवेश संभव है. इस कोर्स से अनेक विद्यार्थियों को रोजगार मिला है. कुछ विद्यार्थी एग्रीकल्चर कंपनी में नौकरी कर रहे है. जबकि कुछ सरकारी नौकरी में है.  संस्था अध्यक्ष रमाकांत शेरकार, प्राचार्य डॉ रोहणकर के मार्गदर्शन में एग्रीकल्चरल मार्केटिंग के को-आर्डिनेटर डा नरेंद्र राईकवार यह पाठ्यक्रम सफलता से चला रहे है. प्रमोद गजभिये, नरेंद्र मोहोर, शरद भाकरे यह पाठ्यक्रम पूर्ण करने के लिए सहयोग कर रहे है.