File Photo
File Photo

    Loading

    भंडारा. आंगनवाड़ियों के माध्यम से स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराकर गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और  6 वर्ष तक के आयु के बच्चों के उचित पोषण पर जोर दिया जाता है. इस बीच, जिले में वर्तमान में ‘एसएएम’ श्रेणी (गंभीर कुपोषित) में 115 और ‘एमएएम’ (मध्यम कुपोषित) श्रेणी में 721 बच्चे हैं. कुपोषित बच्चों की कुल संख्या 836 है.इस वर्ष पांचवां राष्ट्रीय पोषण माह ‘पोषित भारत’ की अवधारणा के साथ लागू किया जा रहा है.

    इस बीच, यह योजना केवल कागजों पर है और केंद्र की ओर से  कोई विशेष राशि इस योजना के लिए उपलब्ध नहीं कराई गई है. अब यह बात स्पष्ट हो गई है कि यह अब योजना ही कुपोषित है. इसलिए कुपोषित बच्चों की संख्या को कम करने के लिए विशेष प्रभावी उपायों को लागू करने की आवश्यकता है.

    जिला परिषद महिला एवं बाल कल्याण विभाग के तहत 7 परियोजनाओं में 1196 बड़ी एवं 109 मिनी आंगनवाडी सहित कुल 1305 आंगनवाडी केन्द्र कार्यरत हैं. 6 वर्ष के बच्चों की संख्या 76 हजार 060 है. इनमें 6 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों को घर पर ही पूरक पोषाहार तथा आंगनवाडी केन्द्रों में 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को महिला बचत समूह के माध्यम से गर्म एवं ताजा भोजन उपलब्ध कराया जाता है.

    इस वर्ष पोषण महाभियान बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसके पीछे अवधारणा यह थी ‘सुपोषित भारत’ होगा. इस बीच, वास्तविकता यह है कि यह अभियान सिर्फ प्रचार से ज्यादा कुछ नहीं है. कुपोषण से सीधे तौर पर लड़ने के लिए लोगों से इसमें भाग लेने का आह्वान किया गया. इस वर्ष सार्वजनिक भागीदारी की पहल के तहत सरपंच और ग्राम पंचायतों को मिलाकर ‘पोषण पंचायत’ की अवधारणा तय की गई है, जिसमें महिला और बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ-साथ पोषण, पारंपरिक भोजन जैसी उपक्रम प्रारंभ हैं. आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों के लिए योजना बनाई जा रही है.

    यह पोषण माह अब समाप्त होने वाला है.ग्राम स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस के अवसर पर आंगनवाडी कार्यकर्ताओं, आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से आंगणवाडी केन्द्र में मातृ एवं शिशु पोषण से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए मार्गदर्शन दिया जा रहा है तथा ‘स्वस्थ बाल प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जा रहा है. हालांकि, जिले में कुपोषित बच्चों के आंकड़ों से कुपोषण की समस्या का प्रभावी समाधान खोजने की जरूरत है.

    अभियान औपचारिकता नहीं होनी चाहिए

    कुपोषण को मिटाने के लिए उचित योजना, सख्त कार्यान्वयन और कार्यक्रमों की कड़ी निगरानी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है.बाल कुपोषण को रोकने के लिए सिर्फ एक महीने का कार्यक्रम नहीं होना चाहिए बल्कि बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के पोषण में सुधार के लिए पूरे वर्ष लगातार और समान गंभीरता के साथ किया जाना चाहिए.

    79 प्रकार की गतिविधियाँ

    पोषण माह के अंतर्गत विभिन्न विभागों के समन्वय से 79 प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं. कुपोषित बच्चों के उत्थान पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. शून्य से छह वर्ष की आयु के बच्चों में कुपोषण को मापने के लिए एसएएम, एमएएम की गणना उम्र, वजन के आधार पर की जाती है. हालांकि, केवल सैम बच्चों का इलाज किया जाता है, जबकि मैम बच्चों को आवश्यक सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती हैं.नतीजा यह निकलता है कि यह बच्चे धीरे-धीरे कमजोर हो जाते हैं और सैम की श्रेणी में आ जाते हैं.

    इसलिए मैम बच्चों को भी सुविधाएं देना जरूरी है ताकि मैम बच्चे सैम न होने पाए. 2021-22 में 183 कुपोषित बच्चों को वीसीडीसी केंद्र में भर्ती कराया गया. उनमें से 96 बच्चों ने सुधार किया और एमएएम श्रेणी में प्रवेश किया. 39 बच्चे सामान्य श्रेणी में आए हैं और 48 बच्चों का प्रमोशन नहीं हो सका है.